अति रसबस नैना रतनारे -सूरदास

सूरसागर

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राग बिलावल




अति रसबस नैना रतनारे।
छपत न छपे छपावत हौ कित जनु मनमथ सिर बरत अंगारे।।
तब पाले हित जानि भली विधि जे हुते हरि संबर दधि डारे।
जब भए प्रकट प्रबीन तरुन तन तरु तरुनाई तामस जनु तारे।।
पुनि सिव पूरब बैर समुझि करि मदन मुदित मादक बल भारे।
अति रिस भौह सरासन जुत करि आनि कमल साधत सर न्यारे।।
समुझि परी सखि रति स्वरूप तुम रतिपति ज्यौं निसि बिलसनहारे।
'सूरदास' धनि धन्य भामिनी जिहिं अनुराग तिलक हरि सारे।। 75 ।।

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