अति कोमल बलराम कन्हाई।
दुहुनि गोद अकूर लिए हँसि, सुनमहुँ तै हरुवाई।।
ग्वाल संग रथ लीन्हे आए, पहुँचे ब्रज की खोर।
देखत गोकुल लोग जहाँ तहँ, नंद उठे सुनि रोर।।
निसि सुपने कौ त्रस्त भए अति, सुन्यौ कंस कौ दूत।
'सूर' नारि नर देखन धाये, घर घर सोर अकूत।।2955।।