अति आतुर नृप मोहिं बुलायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


अति आतुर नृप मोहिं बुलायौ।
कौन काज ऐसौ अटक्यौ है, मन मन सोच बढ़ायौ।।
आतुर जाइ पौरि भए ठाढ़े, कह्यौ पौरिया जाइ।
सुनत बुलाइ महल ही लीन्हौ, सुफलक सुत गए धाइ।
कछु डर कछु धीरज मन कीन्हौ, सुफलक सुत गए धाइ।।
कछु डर कछु धीरज मन कीन्हौ, गयौ नृपति के पास।
'सूर' सोच मुख देखि डरानौ, ऊरध लेत उसाँस।।2928।।

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