- अज्ञानात् क्लेशमाप्नोनोति तथापत्सु निमज्जति।[1]
ऋतु अज्ञान से क्लेश उठाता है तथा विपत्तियों में डूब जाता है।
- अज्ञानं चातिलोभश्चाप्येकं जानीहि।[2]
अज्ञान और अतिलोभ दोनों को एक ही जानो।
- चक्रवत् परिवर्तंते ह्मज्ञानाज्जंतवो भृशम्।[3]
अज्ञान के कारण प्राणी निरंतर चक्र की भाँति घूमते रहते हैं।
- एक: शत्रुर्न द्वितीयोऽस्ति शत्रुरज्ञानतुल्य: पुरुषस्य। [4]
पुरुष का एक ही शत्रु है अज्ञान, इसके समान दूसरा कोई शत्रु नहीं है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 159.3
- ↑ शांतिपर्व महाभारत 159.9
- ↑ शांतिपर्व महाभारत212.17
- ↑ शांतिपर्व महाभारत297.28
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