अजहूँ मान तजति नहिं प्यारी।
मदन नृपति बर सैन साजि कै, घेरे आनि बिहारी।।
इतने कटक देखि मनमोहन, भीत भए भय भारी।
कुसुम बान जित तित तै छूटत, खग, रब घटा सँवारी।।
पल्लव पट निसान, भँवरा भट मजरि साल विषारी।
'सूरदास' प्रभु के सहाय कौ, उठि चलि बेगि हँकारी।।2784।।