अग्नि पुराण

अग्नि पुराण ज्ञान का विशाल भण्डार है। स्वयं अग्निदेव ने इसे महर्षि वसिष्ठ को सुनाते हुए कहा था-

आग्नेये हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्या: प्रदर्शिता:[1]

अर्थात 'अग्नि पुराण' में सभी विद्याओं का वर्णन है। आकार में लघु होते हुए भी विद्याओं के प्रकाशन की दृष्टि से यह पुराण अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। इस पुराण में तीन सौ तिरासी (383) अध्याय हैं। 'गीता' , 'रामायण', 'महाभारत', 'हरिवंश पुराण' आदि का परिचय इस पुराण में है। परा-अपरा विद्याओं का वर्णन भी इसमें प्राप्त होता है। मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएं भी इसमें दी गई हैं। सृष्टि-वर्णन, सन्ध्या, स्नान, पूजा विधि, होम विधि, मुद्राओं के लक्षण, दीक्षा और अभिषेक विधि, निर्वाण-दीक्षा के संस्कार, देवालय निर्माण कला, शिलान्यास विधि, देव प्रतिमाओं के लक्षण, लिंग लक्षण तथा विग्रह प्राण-प्रतिष्ठा की विधि, वास्तु पूजा विधि, तत्त्व दीक्षा, खगोल शास्त्र, तीर्थ माहात्म्य, श्राद्ध कल्प, ज्योतिष शास्त्र, संग्राम विजय, वशीकरण विद्या, औषधि ज्ञान, वर्णाश्रम धर्म, मास व्रत, दान माहात्म्य राजधर्म, विविध स्वप्न वर्णन, शकुन-अपशकुन, रत्न परीक्षा, धनुर्वेद शिक्षा, व्यवहार कुशलता, उत्पात शान्ति विधि, अश्व चिकित्सा, सिद्धि मन्त्र, विविध काव्य लक्षण, व्याकरण और रस-अलंकार आदि के लक्षण, योग, ब्रह्मज्ञान, स्वर्ग-नरक वर्णन, अर्थ शास्त्र, न्याय, मीमांसा, सूर्य वंश तथा सोम वंश आदि का वर्णन इस पुराण में किया गया है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अग्नि पुराण 383-51

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