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- स्त्रीवचोअर्थी
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- स्थाणु (बहुविकल्पी)
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- स्थिर (पार्षद)
- स्थिर (बहुविकल्पी)
- स्थिर बिजली सँग चंचल जलधर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
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- स्थूणाकर्ण
- स्थूणाकर्ण (बहुविकल्पी)
- स्थूणाकर्ण अस्त्र
- स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप
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- स्नेह (आसक्ति)(महाभारत संदर्भ)
- स्नेह (महाभारत संदर्भ)
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- स्फुरद्गौरवर्ण
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- स्मरण-मात्र से जिनके होता -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्मृति
- स्मृति (अंगिरा पत्नी)
- स्मृति (कृष्ण)
- स्मृति (धर्म पत्नी)
- स्मृति (बहुविकल्पी)
- स्मृतीश
- स्यमंतक
- स्यमंतक मणि
- स्यमंतपंचक
- स्यमन्तक
- स्यमन्तक मणि
- स्या म कह्यौ तब भोजन ल्यावहु -सूरदास
- स्यागम लियौ गिरिराज उठाइ -सूरदास
- स्याजम बिना यह कौन करै -सूरदास
- स्याम! अब मत तरसाओ जी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम! तुम परम निठुर हम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम! तोय नैननि रखूँ छिपाय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-अँग जुवती निरखि भुलानीं -सूरदास
- स्याम-कमल-पद-नख की सोभा -सूरदास
- स्याम-घन कब बरसैगौ आय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-दरस-परसन की प्यासी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-मन उमग्यौ आनँद-सिंधु -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-सरोज-बदन सुचि सुन्दर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-स्यामा दोउ करत बिहार -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-स्यामा सुषमाके सागर -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-स्वामिनी राधिके -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम-हृदय बर मोतिनि माला -सूरदास
- स्याम अंग निरखि नैंन कबहूँ न अघाहीं -सूरदास
- स्याम अंग निरखि नैन -सूरदास
- स्याम अचानक आइ गए री -सूरदास
- स्याम अचानक आए री -सूरदास
- स्याम अति राधा विरह भरे -सूरदास
- स्याम आ पहुँचे तुरत निकुंज -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम आपनी चितवनि वरजौ -सूरदास
- स्याम इहै कहि कै उठे -सूरदास
- स्याम उर बाम निज धाम आए -सूरदास
- स्याम उर वाम निज धाम आए -सूरदास
- स्याम उर सुधा दह मानौ -सूरदास
- स्याम उरि प्रीति मुख कपट बानो -सूरदास
- स्याम कछु मो तन हीं मुसुकात -सूरदास
- स्याम कर पत्री लिखी बनाइ -सूरदास
- स्याम कर भामिनी मुख सँवारयौ -सूरदास
- स्याम कर मुरली अतिहिं बिराजति -सूरदास
- स्याम करत है मन की चोरी -सूरदास
- स्याम करत हैं मन की चोरी -सूरदास
- स्याम कहत पूजा गिरि मानी -सूरदास
- स्याम कहो सोई सब मानो -सूरदास
- स्याम कह्यौ तब भोजन ल्यावहु -सूरदास
- स्याम की लीला सुख की खान -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम कुंज बैठारि गई -सूरदास
- स्याम के भुजनि बीच -सूरदास
- स्याम कौ भाव दै गई राधा -सूरदास
- स्याम कौ यहै परेखौ आवै -सूरदास
- स्याम कौं भाव दै गई राधा -सूरदास
- स्याम कौंन कारे की गोरें -सूरदास
- स्याम कौन कारैं की गोरें -सूरदास
- स्याम गए उठि भोरहीं -सूरदास
- स्याम गए जुवतिनि संग त्यागि -सूरदास
- स्याम गए तिय मान कियौ -सूरदास
- स्याम गए देखै जनि कोई -सूरदास
- स्याम गए सुखमा कै धाम -सूरदास
- स्याम गएँ सखि प्रान रहैंगे -सूरदास
- स्याम गऐ सखि प्रान रहैंगे -सूरदास
- स्याम गह्यौ भुज सहजहीं -सूरदास
- स्याम गिरिराज क्यौं धरयौ कर सौं -सूरदास
- स्याम गुनरासि मानिनी मनाई -सूरदास
- स्याम चतुरई कहाँ गँवाई -सूरदास
- स्याम चतुरई जानति हौ -सूरदास
- स्याम चतुरई जानति हौं -सूरदास
- स्याम चलन चहत कह्यौ सखी एक आई -सूरदास
- स्याम चले पछिताइ कै -सूरदास
- स्याम छबि लोचन भटकि परे -सूरदास
- स्याम छवि लोचन भटकि परे -सूरदास
- स्याम जब रुकमिनी हरि सिधाए2 -सूरदास
- स्याम जब रुकमिनी हरि सिधाए -सूरदास
- स्याम जल सुजल ब्रजनारि खोरै -सूरदास
- स्याम तनु प्रिया भूषन विराजै -सूरदास
- स्याम तनु राजति पीत पिछौरी -सूरदास
- स्याम तव मूरति हृदय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम तुम ठग सौ प्रीति करी -सूरदास
- स्याम तुम्हारी मदन-मुरलिका -सूरदास
- स्याम तेरी आरति लागी हो -मीराँबाई
- स्याम तेरी मुरली मधुर धुनि बाजै -सूरदास
- स्याम धन ऐसे है री माई -सूरदास
- स्याम धन ऐसे हैं री माई -सूरदास
- स्याम धरयौ गिरि गोबरधन कर -सूरदास
- स्याम धरयौ तियमोहन रूप -सूरदास
- स्याम नग जानि हिरदै चुरायौ -सूरदास
- स्याम नाम चकृत भई -सूरदास
- स्याम नारि कै बिरह भरे -सूरदास
- स्याम नारि कैं बिरह भरे -सूरदास
- स्याम निरखि प्यारी अँग अंग -सूरदास
- स्याम नृपति, मुरली भई रानी -सूरदास
- स्याम ने मुरली मधुर बजाई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम पाकर निकुंज-संकेत -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम पिया सन्मुख नहिं जोवत -सूरदास
- स्याम प्रगट कीन्हौ अनुराग -सूरदास
- स्याम बतावत प्रेम-मूर्ति मोहि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम बनधाम मग बाम जोवै -सूरदास
- स्याम बनधाम मग बाम जोवैं -सूरदास
- स्याम बलराम कौ सदा गाऊँ -सूरदास
- स्याम बलराम कौ सदा ध्याऊँ -सूरदास
- स्याम बलराम गए धनुषसाला -सूरदास
- स्याम बलराम गुन सदा गाऊँ2 -सूरदास
- स्याम बलराम गुन सदा गाऊँ -सूरदास
- स्याम बलराम जब कंस मारयौ -सूरदास
- स्याम बलराम यह सुनत धाए2 -सूरदास
- स्याम बलराम यह सुनत धाए3 -सूरदास
- स्याम बलराम यह सुनत धाए -सूरदास
- स्याम बलराम रँगभूमि आए -सूरदास
- स्याम बाम कौ सुख दै बोले -सूरदास
- स्याम बाम कौं सुख दै बोले -सूरदास
- स्याम बिना उनए ये -सूरदास
- स्याम बिना उनए ये बदरा -सूरदास
- स्याम बिना यह कौन करै -सूरदास
- स्याम बिनु क्यौ जीवै व्रजवासी -सूरदास
- स्याम बिनु छिनहूँ नाहिं सरै -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम बिनु भई सरद -सूरदास
- स्याम बिनु भई सरद निसि भारी -सूरदास
- स्याम बिनोदी रे -सूरदास
- स्याम बिनोदी रे मधुबनियाँ -सूरदास
- स्याम बिरह-बन-माँझ हिरानी -सूरदास
- स्याम भए बस नागरि कै -सूरदास
- स्याम भए बस नागरि कैं -सूरदास
- स्याम भए राधा बस ऐसै -सूरदास
- स्याम भए राधा वस ऐसै -सूरदास
- स्याम भए वृषभानु-सुता-बस -सूरदास
- स्याम भए वृषभानु-सुता-वस -सूरदास
- स्याम भले अरु तुमहुँ भली -सूरदास
- स्याम भुज वाम गहि संमुख आने -सूरदास
- स्याम भुज वाम गहि समुख आने -सूरदास
- स्याम भुजनि की सुन्दरताई -सूरदास
- स्याम भुजा गहि दूतिका -सूरदास
- स्याम मनाई मानिनी -सूरदास
- स्याम महि बोलि लियौ ढिग प्यारी -सूरदास
- स्याम मिले मोहिं ऐसै माई -सूरदास
- स्याम मुख देखै ही परतीति -सूरदास
- स्याम मुख मुरली अनुपम राजत -सूरदास
- स्याम मुरलि कैं रंग ढरे -सूरदास
- स्याम मोरे ढिग तें कबहुँ न जावै -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम मोसूँ ऐंडो डोले हो -मीराँबाई
- स्याम मोहिं तुम बिन कछु न सुहाय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्याम म्हाँसूँ ऐंडो डोले हो -मीराँबाई
- स्याम यह तुमसौं क्यौं न कहौं -सूरदास
- स्याम रँग रँगे रँगीले नैन -सूरदास
- स्याम रंग नैना राँचे री -सूरदास
- स्याम रतिअंत रस यहै कीन्हौ -सूरदास
- स्याम राम के गुन नित गाऊँ2 -सूरदास
- स्याम राम के गुन नित गाऊँ3 -सूरदास
- स्याम राम के गुन नित गाऊँ -सूरदास
- स्याम राम कौ संगी यह अलि -सूरदास
- स्याम राम मथुरा तजि -सूरदास
- स्याम रूप देखन की साध -सूरदास
- स्याम रूप मैं री मन अरयौ -सूरदास
- स्याम लियौ गिरिराज उठाइ -सूरदास
- स्याम वियोग सुनौ हो मधुकर -सूरदास
- स्याम सँग खेलन चली स्यामा -सूरदास
- स्याम सँग खेलन चली स्यामा 2 -सूरदास
- स्याम सँग खेलन चली स्यामा 3 -सूरदास
- स्याम संग सुख लूटति हौ -सूरदास
- स्याम सकुच प्यारी उर जानी -सूरदास
- स्याम सखा कौं गेंद चलाई -सूरदास
- स्याम सखा जेंवत ही छाँड़े -सूरदास
- स्याम सखा जेवत ही छाड़े -सूरदास
- स्याम सखि नीकै देखे नाहि -सूरदास
- स्याम सखि नीकैं देखे नाहिं -सूरदास
- स्याम सखी कारेहु मैं कारे -सूरदास
- स्याम सबै बतियाँ कहि दैहौ -सूरदास
- स्याम सवनि कौ देखहीं -सूरदास
- स्याम सवनि कौं देखहीं -सूरदास
- स्याम सिधारे कौनै देस -सूरदास
- स्याम सुंदर आवत वन तै बने -सूरदास
- स्याम सुंदर मदन मोहन -सूरदास
- स्याम सुखरासि, रसरासि भारी -सूरदास
- स्याम सैन दै सखी बुलाई -सूरदास
- स्याम सौ काहे की पहिचानि -सूरदास
- स्याम सौं काहे की पहिचानि -सूरदास
- स्याम सौंह कुच परसि कियौ -सूरदास
- स्याम स्यामा परम कुसल जोरी -सूरदास
- स्याम हँसे प्यारी मुख हेरौ -सूरदास
- स्याम हंसि बोले प्रभुता डारि -सूरदास
- स्याम हृदय जलसुत की माला -सूरदास
- स्याम हौ निजु कै बिसारी -सूरदास
- स्यामघन दामिनि प्रगट भई -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्यामरंग राँची ब्रजनारी -सूरदास
- स्यामहि सुख दे राधिका निज धाम सिधारी -सूरदास
- स्यामहिं गावत काम बस 6 -सूरदास
- स्यामहिं देखि महरि मुसक्यानी -सूरदास
- स्यामहिं दोष कहा कहि दीजै -सूरदास
- स्यामहिं दोष देहु जनि माई -सूरदास
- स्यामहिं धीरज दै पुनि आई -सूरदास
- स्यामहिं बोलि लियौ ढिग प्यारी -सूरदास
- स्यामहिं मैं कैसै पहिचानौ -सूरदास
- स्यामहिं मैं कैसैं पहिचानौं -सूरदास
- स्यामहिं सुख दे राधिका निज धाम सिधारी -सूरदास
- स्यामह्रदय जलसुत की माला -सूरदास
- स्यामा छबि निरखति नागरि नारि -सूरदास
- स्यामा जू अपनौ रूप देखि रीझति है -सूरदास
- स्यामा तू अति स्यामहिं भावै -सूरदास
- स्यामा निसि मै सरस बनी री -सूरदास
- स्यामा प्यारी बोलन लागे तमचुर -सूरदास
- स्यामा बदन देखि हरि लाज्यौ -सूरदास
- स्यामा स्याम अंकम भरी -सूरदास
- स्यामा स्याम करत बिहार -सूरदास
- स्यामा स्याम कुंज बन आवत -सूरदास
- स्यामा स्याम कै उर बसी -सूरदास
- स्यामा स्याम कैं उर बसी -सूरदास
- स्यामा स्याम खेलत दोउ होरी -सूरदास
- स्यामा स्याम खेलत दोउ होरी 2 -सूरदास
- स्यामा स्याम छबि की साध -सूरदास
- स्यामा स्याम सुभग जमुना जल -सूरदास
- स्यामा स्याम सेज उठि बैठे -सूरदास
- स्यामा स्याम सौ अति रति कीनी -सूरदास
- स्यामा स्याम सौ आजु बृंदाबन -सूरदास
- स्यामा स्याम सौं अति रति कीनी -सूरदास
- स्यामा स्याय रिझवति भारी -सूरदास
- स्यासमा स्याम करत बिहार -सूरदास
- स्यूमरश्मि
- स्यूमरश्मि और कपिल का संवाद
- स्रम करिहौ जब मेरी सी -सूरदास
- स्रु तिनि हित हरि मच्छ रूप धारयौ2 -सूरदास
- स्रु तिनि हित हरि मच्छ रूप धारयौ -सूरदास
- स्व-सुख-कल्पनाशून्य सर्वथा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्व सुख-वासना-गन्ध -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वक्ष
- स्वजनवध के पाप से भयभीत अर्जुन का विषाद
- स्वधर्म (महाभारत संदर्भ)
- स्वधा
- स्वन
- स्वप्न और सुषुप्ति-अवस्था में मन की स्थिति का वर्णन
- स्वप्नकर्ता
- स्वबोध
- स्वभाव (महाभारत संदर्भ)
- स्वयंप्रभा
- स्वयंभुव मनु
- स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा
- स्वराष्ट्र
- स्वरूप
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- स्वर्ग
- स्वर्ग (बहुविकल्पी)
- स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन
- स्वर्ग में नारद और युधिष्ठिर की बातचीत
- स्वर्ग में ले जाने वाले पुण्यों का वर्णन
- स्वर्ग लोक
- स्वर्गतीर्थ
- स्वर्गद्वार प्रजाद्वार
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- स्वर्गलोक में ययाति का स्वागत
- स्वर्गारोहण पर्व महाभारत
- स्वर्गारोहणपर्व महाभारत
- स्वर्ण-पिंजर-स्थित मगन मन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वर्णग्रीव
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- स्वर्भानु (कृष्ण पुत्र)
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- स्वस्तिक (अनुचर)
- स्वस्तिक (बहुविकल्पी)
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- स्वस्त्यात्रेय
- स्वांग
- स्वागत! स्वागत! आओ प्यारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वाती
- स्वाधिष्ठान चक्र
- स्वामिनी हे बृषभानु-दुलारि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
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- स्वामी अनन्ताचार्य
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- स्वामी आशुधीर देव
- स्वामी करपात्री
- स्वामी के शुचि चरण-कमल में -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वामी पहिलौ प्रेम सँभारौ -सूरदास
- स्वामी मिलै नंद कौ लाला -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- स्वामी हरिदास
- स्वामी हरिदास (हरिपुरुषजी)
- स्वायंभुव मनु
- स्वायंभुव मनु सुत भए दोइ -सूरदास
- स्वायंभू मनु के सुत दोइ -सूरदास
- स्वायम्भुव मनु
- स्वायम्भुव मनु के कथानुसार का धर्म का स्वरूप
- स्वारोचिष मनु
- स्वार्थ (महाभारत संदर्भ)
- स्वाहा
- स्वाहा (बहुविकल्पी)
- स्वाहा (बृहस्पति पुत्री)
- स्विष्टकृत
- स्विष्टकृत (बहुविकल्पी)
- स्विष्टकृत (बृहस्पति पुत्र)
- स्कन्द
- स्याम-बलराम कौं सदा गाऊँ -सूरदास
- स्याम कहा चाहत से डोलत -सूरदास
- स्याम गरीबनि हूँ के ग्राहक -सूरदास
- स्याम गरीबनि हूं के ग्राहक -सूरदास
- स्याम तन देखि री आपु तन देखिऐ -सूरदास
- स्याम भए ऐसे रस -सूरदास
- स्याम भजन-बिनु कौन बड़ाई -सूरदास
- स्याम सखनि ऐसैं समुझावत -सूरदास
- स्याम सुंदर पर वार -मीराँबाई
- स्याम सुनहु इक बात हमारी -सूरदास
- स्याम सुनहु इकबात हमारो -सूरदास
- स्वपचहु स्त्रेष्ट होत पद सेवत -सूरदास
- स्वर्ग
- स्वलोके महारत्न सिंहासनस्थ
- स्वाहेय