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श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कल्यान92 ( गोपी कहती है- ) जबसे ( श्यामके ) सुन्दर कपोल देखे तभीसे लोकलज्जाका ध्यान छूट गया और मन ( उन्हे ) जमानतमें दे रखा है । अचानक पीताम्बर पहने त्रिभंगरुपमे इधरसे आ निकले; ( उस समय उनके ) मस्तकपर रत्नजटित मुकुट विराजमान था मणिमय कुण्डल चञ्चल हो रहे ( हिल रहे ) थे । क्या करुँ कमलमुखपर ( बिखरी अलकेरुप ) थके हुए भौंरोंका समूह दे रहा था । सूरदासजी कहते है- श्यामसुन्दरने ( अपने रुपकी ) यह अभिवृद्धि करके ( मुझे ) बिना मूल्यके ही वश कर लिया । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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