- राम आदि का जन्म तथा कुबेर की उत्पत्ति का वर्णन होता है और अब रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति तथा तपस्या और वर प्राप्ति के बारे में बताया गया है, जिसका उल्लेख महाभारत वनपर्व के 'रामोपाख्यान पर्व' के अंतर्गत अध्याय 275 में बताया गया है[1]-
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कुबेर का पिता के प्रति प्रेम
मार्कण्डेय जी कहते हैं- राजन! पुलस्त्य के क्रोध से उनके आधे शरीर से जो ‘विश्रवा’ नामक मुनि प्रकट हुए थे, वे कुबेर को कुपित दृष्टि से देखने लगे। युधिष्ठिर! राक्षसों के स्वामी कुबेर को जब यह बात मालूम हो गयी कि मेरे पिता मुझ पर रूष्ट रहते हैं, तब वे उन्हें प्रसन्न रखने का यन्त्र करने लगे। राजराज कुबेर स्वयं लंका में रहते थे। वे मनुष्यों द्वारा ढ़ोई जाने वाली पालकी आदि की सवारी पर चलते थे। उन्होंने अपने पिता विश्रवा की सेवा के लिये तीन राक्षस कन्याओं को परिचारिकाओं के रूप में नियुक्त कर दिया था। भरत श्रेष्ठ! वे तीनों ही नाचने और गाने की कला में निपुण थीं तथा सदा ही उन महात्मा महर्षि को संतुष्ट रखने के लिये सचेष्ट रहती थीं। महाराज! उनके नाम थे- पुष्पोत्कटा, राका तथा मालिनी। वे तीनों सुन्दरियां अपना भला चाहती थीं। इसलिये एक दूसरी से स्पर्धा रखकर मुनि की सेवा करती थीं।
रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण, खर और शूर्पणखा की उत्पत्ति
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत वन पर्व अध्याय 275 श्लोक 1-21
- ↑ तत्पश्चात उन्होंने रावण की ओर लक्ष्य करके कहा-
- ↑ तुम्हारे मांगे हुए वरके अतिरिक्त
- ↑ महाभारत वन पर्व अध्याय 275 श्लोक 22-40