- महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 58वें अध्याय में कृष्ण और अर्जुन की बातचीत का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]
विषय सूची
कृष्ण-अर्जुन संवाद=
संजय कहते हैं- राजन! कुरुकुल के उन दोनों प्रमुख वीरों के उस संग्राम को उत्तरोत्तर बढ़ता देख अर्जुन ने यशस्वी भगवान श्रीकृष्ण से पूछा- ‘जनार्दन! आपकी राय में इन दोनों वीरों में से इस युद्धस्थल में कौन बड़ा है अथवा किस में कौन सा गुण अधिक है? यह मुझे बताइये’।
भगवान श्रीकृष्ण बोले- अर्जुन! इन दोनों को शिक्षा तो एक सी मिली है; परंतु भीमसेन बल में अधिक हैं और यह दुर्योधन उनकी अपेक्षा अभ्यास और प्रयत्न में बढ़ा-चढ़ा है। यदि भीमसेन धर्मपूर्वक युद्ध करते रहे तो कदापि नहीं जीतेंगे और अन्यायपूर्वक युद्ध करने पर निश्चय ही दुर्योधन का वध कर डालेंगे। हमने सुना है कि देवताओं ने पूर्वकाल में माया से ही असुरों पर विजय पायी थी और इन्द्र ने माया से ही विरोचन को परास्त किया था। बलसूदन इन्द्र ने माया से वृत्रासुर के तेज को नष्ट कर दिया था, इसलिये भीमसेन भी यहाँ मायामय पराक्रम का ही आश्रया लें। धनंजय! जूए के समय भीम ने प्रतिज्ञा करते हुए दुर्योधन से यह कहा था कि ‘मैं युद्ध में गदा मारकर तेरी दोनों जांघें तोड़ डालूंगा’। अतः शत्रु सूदन भीमसेन अपनी उस प्रतिज्ञा का पालन करें और मायावी राजा दुर्योधन को माया से ही नष्ट कर डालें। यदि ये बल का सहारा लेकर न्यायपूर्वक प्रहार करेंगे, तब राजा युधिष्ठिर पुनः बड़ी विषम परिस्थिति में पड़ जायंगे। पाण्डुनन्दन! मैं पुनः यह बात कहे देता हूं, तुम उसे ध्यान देकर सुनो। धर्मराज के अपराध से हम लोगों पर फिर भय आ पहुँचा है। महान प्रयास करके भीष्म आदि कौरवों को मारकर विजय एवं श्रेष्ठ यश की प्राप्ति की गयी और वैर का पूरा-पूरा बदला चुकाया गया था। इस प्रकार जो विजय प्राप्त हुई थी, उसे उन्होंने फिर संशय में डाल दिया है।
पाण्डुनन्दन! एक की ही हार-जीत से सबकी हार-जीत की शर्त लगाकर जो इन्होंने इस भयंकर युद्ध को जूए का दांव बना डाला, यह धर्मराज की बड़ी भारी नासमझी है। दुर्योधन युद्ध की कला जानता है, वीर है और एक निश्चय पर डटा हुआ है। इस विषय में शुक्राचार्य का कहा हुआ यह एक प्राचीन श्लोक सुनने में आता है, जो नीति शास्त्र के तात्त्विक अर्थ से भरा हुआ है, उसे सुना रहा हूं, मेरे कहने से वह शलोक सुनो। ‘मरने से बचे हुए शत्रुगण यदि युद्ध में जान बचाने की इच्छा से भाग गये हों और पुनः युद्ध के लिये लौटने लगे हों तो उनसे डरते रहना चाहिये; क्योंकि वे एक निश्चय पर पहुँचे हुए होते हैं (उस समय वे मृत्यु से भी नहीं डरते हैं )’। धनंजय! जो जीवन की आशा छोड़कर साहसपूर्वक युद्ध में कूद पड़े हों, उनके सामने इन्द्र भी नहीं ठहर सकते।[1] इस दुर्योधन की सेना मारी गयी थी। यह परास्त हो गया था और अब राज्य पाने से निराश हो वन में चला जाना चाहता था। इसीलिये भागकर पोखरे में छिपा था, ऐसे हताश शत्रु को कौन बुद्धिमान पुरुष समरांगण में द्वन्द्व युद्ध के लिये आमन्त्रित करेगा? कहीं ऐसा न हो कि हमारे जीते हुए राज्य को दुर्योधन फिर हड़प ले। उसने तेरह वर्षो तक गदा द्वारा युद्ध करने का निरन्तर श्रम एवं अभ्यास किया है। देखो, यह भीमसेन के वध की इच्छा से इधर-उधर और ऊपर की ओर विचर रहा है। यदि महाबाहु भीमसेन इसे अन्यायपूर्वक नहीं मारेंगे तो यह धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन ही आपका तथा समस्त कुरुकुल का राजा होगा।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ
शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
| धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना
| दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
| धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना
| कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन
| भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध
| अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण
| दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना
| कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना
| दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना
| अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव
| दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना
| शल्य के वीरोचित उद्गार
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
| उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना
| कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन
| नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध
| शल्य का पराक्रम
| कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध
| भीम के द्वारा शल्य की पराजय
| भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध
| दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध
| दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध
| युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध
| मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
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| अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध
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| शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध
| पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय
| भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध
| सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन
| पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा
| भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार
| दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना
| धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध
| सात्यकि द्वारा शाल्व का वध
| सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध
| कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय
| दुर्योधन का पराक्रम
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम
| कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध
| उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम
| शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय
| अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा
| अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार
| अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार
| अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज
| सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
| अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त
| सहदेव के द्वारा उलूक का वध
| सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
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गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत
| युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना
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| पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना
| कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना
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