हौ हरि अधर दाउँ दै हार्यौ।
कहौ कहा निरगुन कि बातै, उनकौ प्रेम निन्यारौ।।
जौ हौ कहौ प्रात बातै वे, निस दिन कथा चलावै।
उनकी प्रीति देखि सब भूलत, कछू मर्म नहि पावै।।
तन, मन, प्रान सबै हरि अरषन, कमल नैन कौ ध्यान।
निसि बासर उनकै यह चरचा, और न दूजौ ज्ञान।।
कौन भाँति करि जोग सिखाऊँ, भूलि गई मुख बातै।
‘सूर’ सकल वे स्याम उपासी, मोकौ मारत लातै।।4129।।