हौं तौ आजु नदलाल सौं खेलौंगी सखि होरी।
ललिता बिसाखा अँगना लिपावौ चौक पुरावौ रोरी।।
मलयज मृगमद केसरि लै लै मथि मथि भरौ कमोरी।
नवसत साजि सिंगार करी सब भरहु गुलालहि झोरी।।
ज्यौं उडुगन मैं इंदु सहेलिनि मैं त्यौं राधा गोरी।
इक गोरी अरु इक साँवरि हो इक चंचल इक भोरी।।
बरजति सखि बरज्यौ नहिं मानै लै पिचकारी दौरी।
उन रँग लै पिय ऊपर डारयौ पियहूँ रँग मैं बोरी।।
इंद्र देव गन गध्रव बरखै, पुहुप बाटिका खोरी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन कौ चिरजीवौ बर जोरी।। 119 ।।