हो कांनां कि‍न गूंथी जुल्फां कारियां -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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बाल लीला


राग कनड़ी






हो कांनां कि‍न गूंथी जुल्फां कारियां ।।टेक।।
सुघर कला प्रवीन हाथन सूँ, जसुमतिजू ने सँवारियां ।
जो तुम आओ मेरी बाखरियां, जरि राखूं चंदन कि‍वारियां ।
मीरां के प्रभू गिरधर नागर, इन जुलफन पर वारियां ।।165।।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हो = अजी। काँनाँ = कान्हा, कृष्ण। जुल्फां कारियाँ = काली वा गहरी जुल्फें। सुघर = सुन्दर। सँवारियाँ = सजाई वा अलंकृत की गई हैं। बाखरियां = छोटे मकानों पर, बखीरियों पर। ( देखो - ‘जानति हौं गोरस को लेबो, वाहि बाखरि माँझ, - सूरदास)। जरि राखूँ = जड़ कर, भली-भाँति बंद कर के रक्खूँ। वारियाँ = बलिहारी जाती हूँ।

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