हो कभी न पलक-वियोग -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


हो कभी न पलक-वियोग तुम्हारा-मेरा।
दोनों का गोपन रहे एक ही डेरा’॥
हँस उठा हृदय, यों सुनकर प्यारी वाणी।
हँस उठे सभी, मुरझाये थे जो प्राणी॥
तबसे तुम मेरे पास सदा ही रहती।
मीठा ही करती, सब मीठा ही कहती॥
विष-रहित हु‌आ दोनों का सुखमय जीवन।
नित खिले रहेंगे अब तो अपने तन-मन॥
हम दोनों हैं नित एक, वियोग न सम्भव।
है, हु‌आ, न होगा, कभी विलग प्रेमार्णव॥
है लीला यह संयोग-वियोग दिखाती।
ये प्रेमोदधि में रस-लहरें लहराती॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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