होली पिया बिन लागै खारी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहयातना


राग होली


होली पिया बिन लागै खारी, सुनो री सखी मेरी प्‍यारी ।।टेक।।
सूनो गाँव देस सब सूनो, सूनी सेज अटारी ।
सूनी विरहन पिव बिन डोलै, तज दइ पीव पियारी ।
भई हूँ या दुख कारी ।
देस विदेस सँदेस न पहुँचै, होय अँदेसा भारी ।
गिणताँ गिणताँ घस गइँ रेखा, आँगरियाँ की सारी ।
अजहूँ नहिं आये मुरारी ।
बाजत झाँझ मृदंग मुरलिया, बाज रही इकतारी ।
आयो[1] बसंत कंथ घर नाहीं, तन में जर भया भारी ।
स्‍याम मन कहा बिचारी ।
अब तो मेहर करो मुझ ऊपर, चित दे सुणो हमारी ।
मीराँ के प्रभु मिल्ज्‍यो माधो, जनम जनम की कँवारी ।
लगी दरसण की तारी ।।78।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. आई
  2. खारी = फीकी। कारी = स्याह पड़ गई हूँ। या दुख = इस दुख के कारण। अंदेस = आशंका, संशय। झाँझ-झाल। इकतारी = छोटा इकतारा बाजा। कंथ = कंत, पति, प्रियतम। जर = ज्वर, ताप। कँवारी = क्वारी, कुमारी। तारी = ध्यान।

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