होली पिया बिन मोहिं न भावै -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहयातना

राग होली


होली पिया बिन मोहिं न भावै, घर आँगण न सुहावे ।।टेक।।
दीपक जोय कहा करूँ हेली, पिय परदेस रहावे ।
सूनी सेज जहर ज्‍यूँ लागे, सुसक सुसक जिय जावे ।
नींद नहिं आवे ।
कब की ठाढ़ी मैं मग जोऊँ, निसदिन बिरह सतावे ।
कहा कहूँ कछु कहत न आवे, हिवड़ो अति अकुलावे ।
पिया कब दरस दिखावे ।
ऐसा है कोई परम सनेही, तुरत सँदेसो लावे ।
वा बिरियाँ कब होसी मोकूँ, हँस कर निकट बुलावे ।
मीराँ मिल होली गावे ।।79।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेली = अरी सखी। जोय = जलाकर। सुसक सुसक = सिसक सिसक कर। बिरियाँ = अवसर, मौका।

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