होउ मन राम-नाम कौ गाहक -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग



            

होउ मन, राम-नाम कौ गाहक।
चौरासी लख जीव-जोनि मैं भटकत फिरत अनाहक।
भक्तनि हाट बैठि अस्थिर ह्वै, हरि नग निर्मल लेहि।
काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह तू, सकल दलाली देहि।
करि हियाव, यह सौंज लादि कै, हरि कै पुर लै जाहिं।
घाट-बाट कहुँ अटक होइ नहिं सब कोउ देहि निवाहि।
और बनिज मैं नाहीं लाहा, होति मल मैं हानि।
सुर स्‍याम कौ सौदा साँचौ, कह्यौ हमारौ मानि।।310।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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