हे वृषभानु राजनन्दिनि! -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग परज - तीन ताल


हे वृषभानु राजनन्दिनि! हे अतुल प्रेम-रस-सुधा-निधान!
गाय चराता वन-वन भटकूँ, क्या समझूँ मैं प्रेम-विधान!
ग्वाल-बालकों के सँग डोलूँ, खेलूँ सदा गँवारू खेल।
प्रेम-सुधा-सरिता तुमसे मुझ तप्त धूल का कैसा मेल!
तुम स्वामिनि अनुरागिणि! जब देती हो प्रेम भरे दर्शन।
तब अति सुख पाता मैं, मुझपर बढ़ता अमित तुम्हारा ऋण॥
कैसे ऋण का शोध करूँ मैं, नित्य प्रेम-धन का कंगाल!
तुम्हीं दया कर प्रेमदान दे मुझको करती रहो निहाल॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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