हे आराध्या राधा! -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

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राग भैरवी - तीन ताल


हे आराध्या राधा! मेरे मन का तुझमें नित्य निवास।
तेरे ही दर्शन कारण मैं करता हूँ गोकुल में वास॥
तेरा ही रस-तव जानना, करना उसका आस्वादन।
इसी हेतु दिन-रात घूमता मैं करता वंशीवादन॥
इसी हेतु स्नान को जाता, बैठा रहता यमुना-तीर।
तेरी रूपमाधुरी के दर्शनहित रहता चिर अधीर॥
इसी हेतु रहता कदम्बतल, करता तेरा ही नित ध्यान।
सदा तरसता चातक की ज्यों, रूप-स्वाति का करने पान॥
तेरी रूप-शील-गुण-माधुरि मधुर नित्य लेती चित चोर।
प्रेमगान करता नित तेरा, रहता उसमें सदा विभोर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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