हेरि रे मैया हेरि रे -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग सारंग



हेरि रे मैया हेरि रे।
सकल काज पूरन भयौ हो, नैननि देखौ आज।।
नँदरानी ढोटा जायौ हो आयौ ब्रज मैं राज।
दही दूब माथै धरै हो रोरी तिलक सुभाल।।
मंगल गावैं गोपिका हो रहसे सबै गुवाल।
कहै नंद उपनंद सौ हो जैसौ जाकौ भाव।।
उठि किन बाबा नाचहू हो भलौ बन्यौ है दाव।
उठि बाबा ठाढ़े भए हो संग लिए बहु ग्वाल।।
लचकति थोंदिहा हालई हो देखै सब ब्रजबाल।
नंद कहै उपनंद सौ हो गैयाँ सुकुल मँगाइ।।
जसुमति कै भयौ लाडिलौ हो बिप्रनि देहु बुलाइ।
काहू कौ चादर दई हो काहूँ दीनी खोर।।
काहू कौ दीनी दुपटि हो करि करि पीले छोर।
काहू कौ पटुका दियौ हो काहू कुलह कबाइ।।
काहू पीरी पागरी हो बागे सहित मँगाइ।
गोप कहत है नद सौ सदा बसौ ब्रजराइ।।
नंद महर के लाडिले हो 'सूरदास' बलि जाइ।। 7 ।।

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