हुरि जू मोसौ पतित न आन -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग आसावरौ



            
 
हुरि जू, मोसौ पतित न आन।
मन-क्रम-बचन पाप जे कीन्‍हे, तिनकौ नाहि प्रमान।
चित्रगुप्‍त जम-द्वार लिखत हैं, मेरे पातक झारि।
तिनहूँ त्राहि करी सुनि औगुन, कागद दीन्‍हे डारि।
औ नि कौं जम कै अनुसासन, किंकर कोटिक धावैं।
सुनि मेरो अपराध-अधमई, कोऊ निकट न आवैं।
हौं ऐसो, तुम वैसे पावन, गावत हैं जे तारे।
अवगाहौं पूरन गुन स्‍वामी, सूर से अधम उधारे।।197।।

इस पद के अनुवाद के लिए यहाँ क्लिक करें
Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः