श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
हित-युगल
एकं कांचनचंपकच्छवि परं नीलाम्बुदश्यामलं, एक ही प्रेम के दो ‘खिलौने’ होते हुए भी युगल के प्रेम-स्वरूपों में भिन्नता है। श्याम सुन्दर प्रेमी हैं और स्वभावत: उनका प्रेम आवेश युक्त है। उनकी प्रीति वेगवती जल धारा की भाँति अपने किनारों को तोड़ती हुई अपने लक्ष्य की ओर धावित होती रहती है। श्रीराधा प्रेमपात्र हैं, अत: उनका प्रेम उस गंभीर सागर की भाँति है जो अपनी लहरों को अपने अंदर समा लेता है। उनके प्रेम में वाणी को प्रवेश नहीं होता। यह गंभीर सागर यदि अपनी मर्यादा छोड़कर उमड़ पड़े तो इसको रोकने की क्षमता किस में है? यद्यपि प्यारे पीय कौं रहत है प्रेम अवेस। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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