श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
हित वृन्दावन
कृष्णस्याथो गोष्ठ वृन्दावन तत्। इस दृष्टि से वृन्दावन-रति का अर्थ है, वृन्दावनात्मिका रति, वृदावन रूपा रति। यह रति प्रेम की वह भूमि है, भूमिका है, ‘जिसके चारों ओर श्यामवर्ण यमुना के रूप में श्रृंगार रस कुंडल बाँधकर प्रवाहित होता रहता है और जिसके परम पावन पुलिन पर प्रेम-स्वरुप श्याम-श्यामा श्रृंगार-क्रीडा करते रहते हैं। श्याम-श्यामा वृन्दावन से उसी प्रकार नित्य सम्बन्धित हैं जैसे रस रति से सम्बन्धित हैं। ‘यह न तो कहीं से वृन्दावन में आये हैं और न यहाँ से कहीं जायेंगे। यहाँ यह दोनों परावार- विवर्जित और अत्यन्त विषम काम-सागर में अनाद्यनंत क्रीडा करते रहते हैं। इनकी दिव्य कांति सहज रूप से गौर और श्यामल है, इनका नित्य-कैशोर अति आश्चर्यमय है और यह परस्पर अंगों के मिले रहने पर ही जीवन धारण करते हैं। ऐसे युगल जहाँ रहते हैं, मैं उस वृन्दावन की वंदना करता हूँ। आयातं न कुतश्चन नो गन्तृ स्मरैकाबुधौ- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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