श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
ब्रजभाषा-बद्य-साहित्य
12. श्री हितानंद सागर:- स्वामिनी शरण जी कृत, रचना-काल, सं० 1963। इस ग्रन्थ में 26 लहरी हैं। इसमें हित-तत्त्व का विशद विवेचन है और रास-विलासदिक का वर्णन हित के विवर्तों के रूप में किया गया है। लीला में, प्रसिद्ध अष्ट सखियों के साथ, हित परिकर के व्यक्तियों की सखी रूप में अवतारणा की गई है। इसकी भाषा सरल और मुहाविरेदार है। एक उदाहरण देखिये:- ‘तहां रूप गरबीली प्यारी जू में कोई प्रेम की गरुई अवस्था आइ गई है तासौं भृकुटी चढ़ि रही है। ताहि सखी देखि मान सौ जानि मनाइ रही है और अंगुरी उठाइ दिखाइ रही है कै तिहारौ प्यारौ तिहारे सिंगार के हेत प्रेम सौं फूल बीन रह्यौ है, तुम ऐसे प्यारे सौं मान करि रही हौ ।………… अब भीतर श्रीहित अली जू, श्री सेवक अली और नागरीदासी जू, श्री नरवाहनी, ध्रूवदासी जू सहित बतरस मई मोद बढाइ रही है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ’उल्लिखित ग्रंथों के अतिरिक्त कई अन्य गद्य टाकायें प्राप्त हैं जिनमें श्री वृन्दावनदास (चाचा जी से भिन्न) कृत श्री राधा सुधानिधि की टीका (रचना-काल सं. 1820) उल्लेखनीय हैं ।
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