हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 467

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-बद्य-साहित्‍य

12. श्री हितानंद सागर:- स्वामिनी शरण जी कृत, रचना-काल, सं० 1963। इस ग्रन्थ में 26 लहरी हैं। इसमें हित-तत्त्व का विशद विवेचन है और रास-विलासदिक का वर्णन हित के विवर्तों के रूप में किया गया है। लीला में, प्रसिद्ध अष्‍ट सखियों के साथ, हित परिकर के व्यक्तियों की सखी रूप में अवतारणा की गई है। इसकी भाषा सरल और मुहाविरेदार है। एक उदाहरण देखिये:-

‘तहां रूप गरबीली प्यारी जू में कोई प्रेम की गरुई अवस्था आइ गई है तासौं भृकुटी चढ़ि रही है। ताहि सखी देखि मान सौ जानि मनाइ रही है और अंगुरी उठाइ दिखाइ रही है कै तिहारौ प्यारौ तिहारे सिंगार के हेत प्रेम सौं फूल बीन रह्यौ है, तुम ऐसे प्यारे सौं मान करि रही हौ ।………… अब भीतर श्रीहित अली जू, श्री सेवक अली और नागरीदासी जू, श्री नरवाहनी, ध्रूवदासी जू सहित बतरस मई मोद बढाइ रही है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ’उल्लिखित ग्रंथों के अतिरिक्त कई अन्य गद्य टाकायें प्राप्त हैं जिनमें श्री वृन्दावनदास (चाचा जी से भिन्न) कृत श्री राधा सुधानिधि की टीका (रचना-काल सं. 1820) उल्लेखनीय हैं ।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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