हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 28

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


प्रियादास जी ने भक्तमाल की अपनी टीका सं. 1769 में पूर्ण की थी। सम्भवत: इसके बाद ही ‘प्रे्रेम विलास’ में श्री हित हरिवंश सम्बन्धी कथानक जोड़ा गया है और लालदास ने उन्नीसवी शताब्दी में वह अपने ग्रन्थ में ग्रहण कर लिया है।

इस प्रकार, इन दोनों ग्रन्थों में दिये गये वृत्तान्तों के अप्रामाणिक सिद्ध हो जाने से शिष्यता संबन्धी विवाद निराधार बन जाता है और राधावल्लभीय इतिहास पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं रहता।

निकुंज-गमन-काल

सम्प्रदाय के इतिहास में सर्वत्र श्री हित हरिवंश का निकुंज गमन सं. 1609 की आश्विन सुदी पूर्णिमा को बतलाया गया है। पं. रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ‘हिन्दी साहित्य के इतिहास’ मे लिखा है कि ‘ओरछा नरेश महाराज मधुकरशाह के राज गुरु श्री हरिराम व्यास जी सं. 1622 के लगभग आपके शिष्य हुये थे। इससे श्री हित जी के सं. 1622 में और उसके बाद भी, विद्यमान रहने की भ्रान्ति होती है। शुक्ल जी ने यह बात किस आधार पर लिखी है, इसका पता बहुत ढूंढने पर भी नहीं चलता। व्यास जी का सबसे प्राचीन चरित्र ‘रसिक अनन्यमाल’ में प्राप्त होता है और उसमें सं. 1591 में उनका शिष्य होना लिखा है। किसी सबल विरोधी प्रमाण के अभाव में इस पर अविश्वास करने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता। इसके अतिरिक्त हित जी के बाद उनके बड़े पुत्र वनचन्द्र गोस्वामी के गद्दी पर बैठने का काल जय कृष्ण जी के कार्तिक सुदी 16 सं. 1609 लिखा है।

संवत सोरह सै नव सही। कातिक सुदि तेरस दृढ़ गही। आसन पर बैठे गुरु राज। श्री बनचन्द्र सुहृद सिरताज।।[1]

जयकृष्ण जी ने बतलाया है कि हित प्रभु के निकुंज गमन के समय श्री बनचन्द्र जी वृन्दावन में उपस्थित नहीं थे। सूचना मिलने पर वे देवबन से अकेले आये ओर परिवार बाद में आया।

श्री वनचंद विपिन तहँ आये- श्री स्वामी हरिदास सिहाये । ता पाछैं सब कुटुँब बुलायौ- श्री वृन्दावन वास दृढ़ायौ ।।[2]

बनचन्द्र गोस्वामी हित प्रभु के बड़े पुत्र थे अत: उनके बाद में वही राधावल्लभ जी के मंदिर के प्रबंधक एवं प्रधान सेवा-धिकारी नियुक्त हुये। श्री बनचन्द्र जी के बाद सेवाधिकारियों की एक परम्परा मिलती है जो ‘अधिकारी’ कहलाते थे। इन अधिकारियों से सम्बन्धित अनेक पुराने कागज़ात प्रापत हैं, जिनमें उनका जन्म-संवत, निकुंज-गमन संवत एवं अधिकार-काल दिया हुआ मिलता है। इनमें गोस्वामी बनचन्द्र जी का अधिकार काल 55 वर्ष दिया हुआ है, जो सं. 1609 से सं. 1665 तक रहा था।

इसके अतिरिक्त ‘रसिक अनन्यमाल’ में दिये गये हितप्रभु के शिष्यों के चरित्रों में अकबर और उसके समकालीन व्यक्तियों के नाम मिलते हैं और श्री हित जी के शिष्यों के चरित्रों में हुमायुँ और उसके समकालीन शासकों के नाम पाये जाते हैं।

श्रीहित हरिवंश के शिष्य राजा परमानंददास के चरित्र में हुमायूँ का नाम और नवलदास जी के चरित्र में शेरशाह, हेमू, और हुमायूँ के नाम मिलते हैं। गोस्वामी बनचन्द्र जी के कनिष्ट-भ्राता गोस्वामी गोपीनाथ जी के शिष्य सुन्दरदास जी के चरित्र में अकबर, रहीम खानखाना, राजा मानसिंह और गोपालसिंह जादौ के नाम आते हैं। इससे भी अकबर के राज्यारोहण से पूर्व सं. 1609 में श्री हित हरिवंश का निकुंज-गमन सिद्ध होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हितकुल शाखा-12
  2. हितकुल शाखा

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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