श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
आनंद कंद नंद नंदन, जाके रस रंग रच्यी, व्यास जी की वाणी के दो विभाग हैं। एक विभाग में ‘सिद्धान्त के पद’ हैं, जिनमें श्री वृन्दावन महिमा, साधुन की स्तुति, विनय के पद, संत महिमा, रसिक अनन्य व्रत तथा उपदेशात्मक पद सम्मिलित हैं। इन पदों की संख्या 294 है। इनके साथ 146 साखियाँ भी हैं। व्यास जी सरल, स्व-तन्त्र और विनोदी स्वभाव के महात्मा थे। उनको पाखण्ड से चिढ़ थी और उन्होंने अपने पदों में पाखंडियों को-फिर चाहे वे कितने ही उच्चस्थित क्यों न हों- खूब आड़े हाथों लिया है। वृन्दावन रसरीति में एकान्त श्रद्धा होते हुए भी उनका दृष्टिकोण उदार था और उन्होंने जिस किसी में भी निष्कपट भगवत प्रेम देखा, उसी की प्रशंसा मुक्त कंठ से की है। व्यास-वाणी के द्वितीय विभाग में ‘रस के पद’ हैं जिनकी संख्या 455 है। इनमें रास पंचाध्याई भी सम्मिलित है। यह व्यास जी की अत्यन्त उत्कृष्ट रचना है। शुकोक्त पंचाध्याई हिन्दी भाषान्तर होते हुए भी यह अनेक अंशों में मौलिक कृति है। इसमें, व्यास जी ने, भागवत की रस-रीति के साथ वृन्दावन रस-रीति का समन्वय करने की चेष्टा की हैं। इस पंचाध्याई की उत्तमता का एक प्रमाण यह है कि इसको अनेक वर्षो पूर्व ही ‘सूर-सागर’ में ग्रथित कर लिया गया है और अभी तक यह सूरदास जी के रास के पदों के साथ ही चल रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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