हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 273

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


व्‍यास जी की निष्‍ठा का आधार श्री राधा का वह परात्‍पर प्रेम-सौदर्य है जिसके सबसे बड़े उपासक आनंद कंद नंद-नंदन हैं। श्रीराधा के बल पर ही व्‍यास जी सबसे टेढ़े चलते हैं। यही बल उनकी वाणी के पीछे काम कर रहा है और उसको आत्‍म-निर्भर, उन्‍मुक्‍त और तेजस्‍वी बनाये हुए है। व्‍यास जी के अधिकांश पद श्रीराधा के रूप-गुण के वर्णन में लगे हुए है और उनकी अदभुत प्रेम निष्‍ठा से आलोकित है। रूप वर्णन के एक सुन्‍दर पद को समाप्‍त करते हुए वे कहते है,

आनंद कंद नंद नंदन, जाके रस रंग रच्‍यी,
अंग भरि सुधंग नच्‍यौ, मानत हँसि हार।
ताके बल गर्व भरे, रसिक व्‍यास से न डरे,
कर्म-धर्म, लोक-वेद, छांडि मुक्ति चार।।

व्‍यास जी की वाणी के दो विभाग हैं। एक विभाग में ‘सिद्धान्‍त के पद’ हैं, जिनमें श्री वृन्‍दावन महिमा, साधुन की स्‍तुति, विनय के पद, संत महिमा, रसिक अनन्‍य व्रत तथा उपदेशात्‍मक पद सम्मिलित हैं। इन पदों की संख्‍या 294 है। इनके साथ 146 साखियाँ भी हैं। व्‍यास जी सरल, स्‍व-तन्‍त्र और विनोदी स्‍वभाव के महात्‍मा थे। उनको पाखण्‍ड से चिढ़ थी और उन्‍होंने अपने पदों में पा‍खंडियों को-फिर चाहे वे कितने ही उच्‍चस्थित क्‍यों न हों- खूब आड़े हाथों लिया है। वृन्‍दावन रसरीति में एकान्‍त श्रद्धा होते हुए भी उनका दृष्टिकोण उदार था और उन्‍होंने जिस किसी में भी निष्‍कपट भगवत प्रेम देखा, उसी की प्रशंसा मुक्‍त कंठ से की है।

व्‍यास-वाणी के द्वितीय विभाग में ‘रस के पद’ हैं जिनकी संख्‍या 455 है। इनमें रास पंचाध्‍याई भी सम्मिलित है। यह व्‍यास जी की अत्‍यन्‍त उत्‍कृष्‍ट रचना है। शुकोक्त पंचाध्‍याई हिन्‍दी भाषान्‍तर होते हुए भी यह अनेक अंशों में मौलिक कृति है। इसमें, व्‍यास जी ने, भागवत की रस-रीति के साथ वृन्‍दावन रस-रीति का समन्‍वय करने की चेष्‍टा की हैं। इस पंचाध्‍याई की उत्तमता का एक प्रमाण यह है कि इसको अनेक वर्षो पूर्व ही ‘सूर-सागर’ में ग्रथित कर लिया गया है और अभी तक यह सूरदास जी के रास के पदों के साथ ही चल रही है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः