हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 271

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


नित्‍य-रास के एक पद में व्‍यास जी ने ‘प्रति’ शब्‍द के विद-ग्‍धता पूर्ण पुनरावर्तन से वृंदावन के रास-विलास का मार्मिेक वर्णन कर दिया है।

कुंज-कुंज प्रति रति वृन्‍दावन, द्रुम-द्रुम प्रति रति रंग।
बेलि-बेलि प्रति केलि, फूल प्रति फल प्रति विमल विहंग।।
कंठ-कंठ प्रति राग-रागिनी, सुर प्रति तान-तरंग।
गौर श्‍याम प्रति, श्‍याम वाम प्रति, अंग प्रति सरस सुधंग।।
मुख प्रति मंद हास, नैननि प्रति सैन, भौहनि प्रति भंग।
रास-विलास पुलनि प्रति, नागर प्रति नागरि कुल संग।।
रूप-रूप प्रति गुन सागर, सहचिर प्रति ताल मृदंग।
अधरनि प्रति मधु, गं‍डनि प्रति विधु, उर प्रति उरज उतंग।।
कहत न आवें सुख देखत मुख मोहे कोटि अनंग।
व्‍यास स्‍वामिनी राधाहि सेवहिं, श्‍याम धरें बहु अंग।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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