कुंज-कुंज प्रति रति वृन्दावन, द्रुम-द्रुम प्रति रति रंग।
बेलि-बेलि प्रति केलि, फूल प्रति फल प्रति विमल विहंग।।
कंठ-कंठ प्रति राग-रागिनी, सुर प्रति तान-तरंग।
गौर श्याम प्रति, श्याम वाम प्रति, अंग प्रति सरस सुधंग।।
मुख प्रति मंद हास, नैननि प्रति सैन, भौहनि प्रति भंग।
रास-विलास पुलनि प्रति, नागर प्रति नागरि कुल संग।।
रूप-रूप प्रति गुन सागर, सहचिर प्रति ताल मृदंग।
अधरनि प्रति मधु, गंडनि प्रति विधु, उर प्रति उरज उतंग।।
कहत न आवें सुख देखत मुख मोहे कोटि अनंग।
व्यास स्वामिनी राधाहि सेवहिं, श्याम धरें बहु अंग।।