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साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
व्यास जी ने श्याम-श्यामा के रास-विलास का वर्णन हित-प्रभु की परिपाटी से किया है। उन को भी रास लीला अत्यन्त प्रिय है और वे उसको सम्पूर्ण विलासों का आधार मानते है। व्यास जी ने रास का वर्णन कई रूपों में किया है, जैसे वृन्दावन का रास, यमुना-तट का रास, यमुना-जल पर रास, शरद-रासोत्सव, शय्या का रास आदि। रास के अधिकांश पदों में भाषा का गुम्फ सुदृढ़ है और भावों की रमणीयता दर्शनीय है। यमुना-तट के रास का एक पद देखिये-
सुघर राधिका प्रवीन वीना वर रास रच्यों,
श्याम सडग वर सुधंग तर्रान तनया तीरे।
आनंद-कंद वृनदावन शरद चंद मन्द-मन्द,
पवन कुसुम ताप दवन धुनित कल कुटीरे।
रूनित किंकिनी सुचारू, नूपुर मनि बलय हारू,
अगड रव मृदंग तार तरल तिरप चीरे।
गावत अति रडग रहो, मोपे नहिं जात कह्मो,
व्यास रस-प्रवाह बह्मो, निरखि नैन सीरे।।
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