हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 270

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


व्‍यास जी ने श्‍याम-श्‍यामा के रास-विलास का वर्णन हित-प्रभु की परिपाटी से किया है। उन को भी रास लीला अत्‍यन्‍त प्रिय है और वे उसको सम्‍पूर्ण विलासों का आधार मानते है। व्‍यास जी ने रास का वर्णन कई रूपों में किया है, जैसे वृन्‍दावन का रास, यमुना-तट का रास, यमुना-जल पर रास, शरद-रासोत्‍सव, शय्या का रास आदि। रास के अधिकांश पदों में भाषा का गुम्‍फ सुदृढ़ है और भावों की रमणीयता दर्शनीय है। यमुना-तट के रास का एक पद देखिये-

सुघर राधिका प्रवीन वीना वर रास रच्‍यों,
श्‍याम सडग वर सुधंग तर्रान तनया तीरे।
आनंद-कंद वृनदावन शरद चंद मन्‍द-मन्‍द,
पवन कुसुम ताप दवन धुनित कल कुटीरे।
रूनित किंकिनी सुचारू, नूपुर मनि बलय हारू,
अगड रव मृदंग तार तरल तिरप चीरे।
गावत अति रडग रहो, मोपे नहिं जात कह्मो,
व्‍यास रस-प्रवाह बह्मो, निरखि नैन सीरे।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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