हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 269

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


व्‍यास जी ने वृन्‍दावन की भूमि, रज, कुंजे, रासस्‍थली, विटप-वेलि, कंद-मूल-फल, यमुना-जल, गाय, गोपी आदि का वर्णन बड़े उत्‍साह और निष्‍ठा के साथ किया है।

रुचत मोहि वृन्‍दावन कौ साग।
कंद-मूल-फल-फूल जीविका, मैं पाई बड़ भाग।।
घृत-मधु-मिश्री-मेवा-मैदा, मेरे भाये छाग।
एक गाय पै वारौं कोटिक ऐरावत से नाग।
जमुना जल पर वारौं सोमपान से कोटिक जाग।
राधापति पर वारौ कोटि रमा के सुभग सुहाग।।
साँची माँग किसोरी के सिर, मोहन के सिर पाग।
बंसीवट पर वारौं कोटिक देव कल्‍पतरु बाग।।
गोपिनु की प्रीतिहि पूजत नहिं शुक नारद अनुराग।
कुंज-केलि मीठी है विरह-भक्‍ति सीठी ज्‍यौं आग।।
व्‍यास विलास रास-रस पीवत मिटैं हृदय के दाग।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. व्‍या. वा. पृ. 10

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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