श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
राधे जू अरु नवल श्याम धन, विहरत वन उपवन वृन्दावन। हरिंवश-हरिदासी बोली, नहिं सहचरि समाज कोऊ जन। पद के अंतिम चरणों में व्यास जी ने 'हरिवंशी-हरिदासी' का उल्लेख किया है और साथ ही अपने तीनों पन बीत जाना लिखा है। श्री हित हरिवंश का निकुंज-गमन सं. 1609 में मानने पर, भक्त कवि व्यास जी' के लेखक के अनुसार, उस समय व्यास जी की आयु केवल 42 वर्ष की होती है और इस आयु में व्यास जी अपने तीनों पन व्यतीत होना नहीं लिख सकते। 'रसिक अनन्य माल के अनुसार व्यास जी की आयु उस समय 60 वर्ष की थी और वे अपने सम्बन्ध में उपरोक्त बात कह सकते थे। साथ ही इस पद में श्री हरिवंश, श्री हरिदास और स्वयं व्यास जी अपने ऐतिहासिक रूपों में हमारे सामने नहीं आते। व्यास जी ने अपने लिये 'व्यास दासि' और श्री हरिवंशी-हरिदासी' कहा है। पद में वर्णित घटना इन तीनों के नित्य-सखी-रूप से सम्बन्धित है और इससे कोई ऐतिहासिक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। श्रीहित हरिवंश व्यास जी के दीक्षा-गुरु थे। भगवत मुदित जी ने व्यास जी के चरित्र में निभ्रन्ति रूप से इस बात को लिखा है और चरित्र के अन्त में पुन: इस प्रश्न को उठाकर स्वयं व्यास जी की वाणी में ही इसका समुचित उत्तर पाने को कहा है- राधावल्लभ इष्ट, गुरु श्री हरिवंश सहाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रसिक अनन्य माल
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