हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 262

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


हम पहिले कह चुके है कि व्‍यास जी का वृन्‍दावन-गमन काल अनिर्णीत रहने से श्रीहित हरिवंश का निकुंज-गमन-काल चक्‍कर में पड़ गया है। 'भक्‍त कवि व्‍यास जी' के लेखक 1591 में व्‍यास जी का 'प्रथम वार' वृन्‍दावन जाना मानते है। उनकी राय में इस बात को लेकर हिताचार्य के निकुंज-गमन-काल पर सन्‍देह नहीं किया जा सकता। किन्‍तु उन्‍होंने व्‍यास जी के एक पद के साक्ष्‍य पर हिताचार्य का सं. 1609 के बहुत बाद तक उपस्थित रहना सिद्ध किया है। वह पद यह है-

राधे जू अरु नवल श्‍याम धन, विहरत वन उपवन वृन्‍दावन।
ललित लता प्रति ललित माधुरी, मुनि पंछी बैठे समूह गन।।

हरिंवश-हरिदासी बोली, नहिं सहचरि समाज कोऊ जन।
व्‍यास दासि आगे ही ठाढ़ी, सुख निरखत बीते तीनों पन।।

पद के अंतिम चरणों में व्‍यास जी ने 'हरिवंशी-हरिदासी' का उल्‍लेख किया है और साथ ही अपने तीनों पन बीत जाना लिखा है। श्री हित हरिवंश का निकुंज-गमन सं. 1609 में मानने पर, भक्‍त कवि व्‍यास जी' के लेखक के अनुसार, उस समय व्‍यास जी की आयु केवल 42 वर्ष की होती है और इस आयु में व्‍यास जी अपने तीनों पन व्‍यतीत होना नहीं लिख सकते। 'रसिक अनन्‍य माल के अनुसार व्‍यास जी की आयु उस समय 60 वर्ष की थी और वे अपने सम्‍बन्‍ध में उपरोक्‍त बात कह सकते थे। साथ ही इस पद में श्री हरिवंश, श्री हरिदास और स्‍वयं व्‍यास जी अपने ऐतिहासिक रूपों में हमारे सामने नहीं आते। व्‍यास जी ने अपने लिये 'व्‍यास दासि' और श्री हरिवंशी-हरिदासी' कहा है। पद में वर्णित घटना इन तीनों के नित्‍य-सखी-रूप से सम्‍बन्धित है और इससे कोई ऐतिहासिक निष्‍कर्ष नहीं निकाला जा सकता।

श्रीहित हरिवंश व्‍यास जी के दीक्षा-गुरु थे। भगवत मुदित जी ने व्‍यास जी के चरित्र में निभ्रन्ति रूप से इस बात को लिखा है और चरित्र के अन्‍त में पुन: इस प्रश्‍न को उठाकर स्‍वयं व्‍यास जी की वाणी में ही इसका समुचित उत्तर पाने को कहा है-

राधावल्‍लभ इष्‍ट, गुरु श्री हरिवंश सहाय।
व्‍यास पदनि तें जानियों, हौं कहा कहौं बनाय।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रसिक अनन्‍य माल

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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