श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
बहुत वर्ष लों ऐसे रहे- श्री हरिवंश विरह दुख सहे। व्यास जी सं. 1591 में वृन्दावन गये थे और श्रीहरिवंश का निकुंज-गमन सं. 1609 में हुआ था। इन अठारह वर्षो में व्यास जी वृन्दावन में ही रहे थे। 'भक्त कवि व्यास जी' में सं. 1591 में व्यास जी का वृन्दावन-गमन तो स्वीकार किया गया है किन्तु लेखक ने 'अनुमान' लगाया है कि इस सम्वत में वे 'प्रथम वार' वृन्दावन गये थे और वहाँ कुछ दिन रहने के बाद तीर्थ-यात्रा को चले गये। सं. 1600 के लगभग वे ओड़छे लौटे और फिर सं. 1612 में वृन्दावन जाकर वहाँ बस गये। लेखक ने अपने अनुमान को जिन प्रमाणों पर आधारित किया है उनमें प्रधान व्यास जी के वे पन्द्रह के लगभग पद हैं जिनमें उन्होंने वृन्दावन-वास की तीव्र आकांक्षा प्रगट की है। लेखक का कहना है कि तीर्थ-यात्रा से लौटने के बाद ओड़छे में व्यास जी ने इन पदों की रचना की थी। निश्चय ही ये पद वृन्दावन से बाहर लिखे गये हैं किन्तु इनकी संगति बैठाने के लिये रसिक अनन्य माल से भिन्न कथानक कल्पित करने की आवश्यकता नहीं है। नवलदास जी से प्रभावित होने के बाद व्यास जी का वृन्दावन में एवं वहाँ के रसिक भक्तों में अगाध प्रेम जाग उठा था और सांसारिक आसक्तियों के बंधन टूटने लगे थे। वृन्दावन जाने में जो वस्तुयें अन्तराय करती थीं- और उनमें सबसे बड़ी उनकी वंश क्रमानुगत राज्य-गुरुता थी- वे उनको विषवत प्रतीत होती थीं। उनके सामने वृन्दावन का जो चिताकर्षण वर्णन किया गया था, मन अब केवल उसी में रमना चाहता था। व्यास जी की उस समय की स्थिति का वर्णन करने वाला एक पद देखिये- हरि मिलिहे मोहि वृन्दावन में। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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