हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 259

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


'रसिक अनन्‍य माल के' के अनुसार व्‍यास जी सं. 1591 में वृन्‍दावन आने के बाद फिर लौट कर ओड़छे नहीं गये। यह बात इस कथन के द्वारा मालूम होती है कि 'बहुत दिनों तक वृन्‍दावन में रहने के बाद उनको श्रीहरिवंश का विरह-दुख सहन करना पड़ा था।'

बहुत वर्ष लों ऐसे रहे- श्री हरिवंश विरह दुख सहे।

व्‍यास जी सं. 1591 में वृन्‍दावन गये थे और श्रीहरिवंश का निकुंज-गमन सं. 1609 में हुआ था। इन अठारह वर्षो में व्‍यास जी वृन्‍दावन में ही रहे थे।

'भक्‍त कवि व्‍यास जी' में सं. 1591 में व्‍यास जी का वृन्‍दावन-गमन तो स्‍वीकार किया गया है किन्‍तु लेखक ने 'अनुमान' लगाया है कि इस सम्‍वत में वे 'प्रथम वार' वृन्‍दावन गये थे और वहाँ कुछ दिन रहने के बाद तीर्थ-यात्रा को चले गये। सं. 1600 के लगभग वे ओड़छे लौटे और फिर सं. 1612 में वृन्‍दावन जाकर वहाँ बस गये। लेखक ने अपने अनुमान को जिन प्रमाणों पर आधारित किया है उनमें प्रधान व्‍यास जी के वे पन्‍द्रह के लगभग पद हैं जिनमें उन्‍होंने वृन्‍दावन-वास की तीव्र आकांक्षा प्रगट की है। लेखक का कहना है कि तीर्थ-यात्रा से लौटने के बाद ओड़छे में व्‍यास जी ने इन पदों की रचना की थी। निश्‍चय ही ये पद वृन्‍दावन से बाहर लिखे गये हैं किन्‍तु इनकी संगति बैठाने के लिये रसिक अनन्‍य माल से भिन्‍न कथानक कल्पित करने की आवश्‍यकता नहीं है। नवलदास जी से प्रभावित होने के बाद व्‍यास जी का वृन्‍दावन में एवं वहाँ के रसिक भक्‍तों में अगाध प्रेम जाग उठा था और सांसारिक आसक्तियों के बंधन टूटने लगे थे। वृन्‍दावन जाने में जो वस्‍तुयें अन्‍तराय करती थीं- और उनमें सबसे बड़ी उनकी वंश क्रमानुगत राज्‍य-गुरुता थी- वे उनको विषवत प्रतीत होती थीं। उनके सामने वृन्‍दावन का जो चिताकर्षण वर्णन किया गया था, मन अब केवल उसी में रमना चाहता था। व्‍यास जी की उस समय की स्थिति का वर्णन करने वाला एक पद देखिये-

हरि मिलिहे मोहि वृन्‍दावन में।
साधु वचन में साँचे जाने फूल भई मेरे मन में।।
विहरत सड़ग देखि अलि गन जुत निविड़ निकुंज भवन में।
नैन सिराइ पांइ गहिवी तब धीरज रहे कवन में।।
कबहुक रास विलास प्रगटि है सुन्‍दर सुभग पुलिन में।
विधि विहार अहार सच्‍यो है व्‍यास दास लोचन में।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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