श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
श्रीहरिराम व्यास (सं. 1549-1655)
हरि बिनु छिन न कहूँ सुख पायौ। बहुत वर्षो तक इस प्रकार रहने के बाद व्यास जी को हित प्रभु के वियोग का दुख सहन करना पड़ा। बहुत बरस लो ऐसे रहे- श्रीहरिवंश विरह दुख सहे।। श्रीहित जी के निकुंज-गमन के बाद व्यास जी ने बड़ा कष्ट पाया। इस पद के द्वारा उन्होंने उसको व्यक्त किया है: हुनो रस रसिकनि को आधार। व्यास जी के बड़े पुत्र किशोरदास जब वृन्दावन आये तो स्वामी हरिदास जी उनको देखकर बड़े प्रसन्न हुए। व्यास जी ने उनको स्वामी जी का शिष्य करा दिया। इसीलिये वे स्वामी जी को मानते थे और कुंज-विहारी से प्रेम रखते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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