हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 254

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


व्‍यास जी विवाद करने के लिये जो पोथियाँ लाये थे वे उन्‍होंने यमुना में फेंक दीं और नित्‍य-विहार की रस-रीति से उपासना करने लगे। उन्‍होंने युगल किशोर ठाकुर प्रगट किेये और श्रीराधा की गादी स्‍थापित करके हित-पद्धति से सेवा पूजा प्रारंभ कर दी।

एक दिन व्‍यास जी रासलीला देख रहे थे। सहसा श्रीराधा के पैर का नूपुर खुल गया। व्‍यास जी ने अपने यज्ञोपवीत को तोड़ कर नूपुर बांध दिया और रासलीला के आनंद को भंग न होने दिया।

व्‍यास जी, इस रीति से, वृन्‍दावन में बहुत वर्षो तक रहे। उनको जिनकी कृपा से यह भजन-संपत्ति मिली उन हित महा-प्रभु की स्‍तुति उन्‍होंने इस पद में की है,

नमो नमो जय श्री हरिवंश।
रसिक अनन्‍य वेणु-कुल मंडन लीला मान सरोवर हंस।। इत्‍यादि

व्‍यास जी को अपने सब पिछले जन्‍मों का ज्ञान हो गया और वे राधावल्‍लभ को सर्वोपरि मानने लगे। उन्‍होंने गाया है,

राधा वल्‍लभ मेरौ प्‍यारौ।
सर्वोपरि सब ही कौ ठाकुर सब सुखदानि हमारौ।
अबतारी सब अबतारनि को महतारी महतारौ।। इत्‍यादि

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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