श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान
इन दोनों सम्प्रदायों के अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दियों के इतिहास से मालूम होता है कि उस समय इस झगड़े ने उग्र रूप धारण कर लिया था और दोनों संप्रदाय अपने पक्ष को प्रामाणिक सिद्ध करने के लिये अपने प्राचीन ग्रंथों में इस झगड़े के नये अध्याय जोड़ रहे थे! श्री हित हरिवंश के पौत्र वृन्दावन दास गोस्वामी का ‘हितमालिका’ नामक एक ग्रन्थ प्रसिद्ध है। इसमें सम्प्रदाय के आरम्भिक-युग का इतिहास दिया हुआ बतलाते हैं किन्तु आज वह जिस रूप में प्राप्त है उसमें केवल यही झगड़े भर रहे हैं। गौड़ीय सम्प्रदाय के नित्यानन्द दास ने लगभग इसी काल में सोलह विलासों में पूर्ण एक ‘प्रेमविलास’ नामक ग्रन्थ की रचना की। ग्रन्थकार ने अपने को नित्यानन्द प्रभु की पत्नी जाह्ववा देवी का शिष्य बतलाया है और ग्रन्थ रचना का प्रयोजन तीन प्रसिद्ध गौड़ीय भक्त श्रीनिवास, नरोत्तमदास एवं श्यामानंद का चरित्र लिखना बतलाया है। यह ग्रन्थ विभिन्न भक्तों के द्वारा देखे गये स्वपनों के वृत्तान्तों एवं आकश-वाणियों से पूर्ण है। प्रेम-विलास के प्रथम विलास में पाँच स्वप्न-वृत्तान्त, तीसरे में दो, चौथे में पाँच स्वप्न और श्री निवास के साथ नित्यधामगत अद्वैत-प्रभु का साक्षात्कार पंचम में एक स्वप्न छठे में तीन, नवम में दो स्वप्न और आकाश-वाणी, दशम में दो स्वप्न, ग्यारहवें में एक, तेहरवें में एक और चौदहवें में एक स्वप्न वृत्तांत का सविस्तार वर्णन किया गया है। इस ग्रन्थ की इस प्रकार की रचना-शैली देख कर लोगों ने इसमें अपनी मनमानी बाते घुसा दी हैं और आज इस ग्रन्थ में साढ़े चौबीस विलास मिलते हैं! श्री विमान बिहारी मजूमदार द्वारा लिखित एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित ‘चैतन्य-चरितेर उपादान’ नामक खोज-पूर्ण ग्रन्थ में प्रेमविलास की विशद समीक्षा की गई है। श्री मजूमदार ने बतलाया है कि उन्होंने इस ग्रंथ की जो कई हस्तलिखित प्राचीन प्रतियाँ देखी हैं, उनमें से काँदी गाँव के किशोरी मोहन सिंह के पास वाली प्रति में यह ग्रंथ सोलह विलासों में पूर्ण हुआ है। विष्णुपुर की महारानी ध्वजमणी पट्ट महादेवी के हाथ की लिखी प्रति में भी सोलह विलास हैं। राम नारायण विद्या-रत्न ने इस ग्रन्थ को प्रथम बार प्रकाशित किया था। उन्होंने इसमें सोलह के बजाय अठारह विलास रखे थे। द्वितीय संस्करण में उन्होंने दो विलास और बढ़ा दिये। उनके बाद मेें यशोदा नन्दन तालुकेदार ने इस ग्रन्थ के 24 विलास प्रकाशित किये। श्री मजूमदार ने यह सब घटना देख कर लिखा है कि ‘नन्दालय में जिस प्रकार श्रीकृष्ण दिन-दिन बड़े होते थे, उसी प्रकार वैष्णवों के घरों में‚ ‘प्रेम विलास’ बढ़ता चला गया।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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