हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 247

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


वृषभानु नंदिनी मधुर कल गावै।
विकट औघर तान चर्चरी ताल सौं,
नंद-नंदन मनसि मोद उपजावै।।
प्रथम मज्ज्न चारु चीर कज्ज्ल तिलक,
श्रवण कुंडल वदन चंद्रनि जलावै।
सुभग नक बेसरी रतन हाटक जरी,
अधर बंधूक दसन कुंद चमकावै।।
वलय कंकन चारु उरसि राजत हारु,
कटिव किंकिनी चरण नूपुर बजावै।
हंस कल गामिंनी मथत मद कामिनी,
नखनि मदयंतिका रंग रुचि द्यावै।।
नितं सागर रभसि रहसि नागरि नवल,
चन्द्र चाली विविध भेदनि जनावै।
कोक विद्या विदित भाइ अभिनय निपुन,
भ्रू विलासनि मकर-केतनि नचावै।।
निविड़ कानन भवन बाहु रंजित रवन,
सरस आलाप सुख-पुंज बरसावै।
उभय संगम सिंधु सुरत पूषण बंधु,
द्रवत मकरंद हरिवंश अलि पावै।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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