हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 243

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


दोऊ जन भींजत अटके बातन।
सघन कुंज के द्वारे ठाड़े अम्बर लपटे गातन।।
ललिता ललित रूप रस भींजी बूँद बचावत पातन।
(जय श्री) हित हरिवंश परस्पर प्रीतम मिलवत रति रस घातन।।

चलहि राधिके सुजान तेरे हित सुख निधान,
रास रच्यौ स्याम तट कलिंग नंदिनी।
निर्तत युवती समूह राग-रंग अति कुतूह,
बाजत रस-मूल मुरलिका अनंदिनी।।
वंशीवट निकट जहाँ परम रमनि भूमि तहाँ,
सकल सुखद मलय बहै वायु मंदिनी।
जाती ईषद विकास कानन अतिशय सुवास,
राका निसि शरद मास विमल चन्दिनी।
नर वाहन प्रभु निहार लोचन भरि घोष नारि,
नख सिख सौंदर्य काम दुख निकंदनी।
बिलसहिं भुज ग्रीव मेलि भामिनि सुख सिंधु झेलि,
नव निकुंज श्याम केलि जगत वंदिनी।।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह पद कुंभनदास जी के नाम से प्रचलित है।

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः