हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 242

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


वास्तव में, सूरसागर में हित चतुरासी के जो पद सम्मिलित कर दिये गये हैं, वे उसके सर्वश्रेष्ठ रत्नों में से हैं। नीचे श्रीहिताचार्य के कुछ छंद उदधृत किये जाते हैं,

ना जानौ छिन अंत कवन बुधि घटहि प्रकाशित।
छुटि चेतन जु अचेत तेउ मुनि भये विसवासित।।
पारासर सुर इन्द्र कलप कामिनि मन फंद्या।
परिव देह दुख द्वन्द कौंन क्रम काल निकंद्या।।
इहि डरहि डरपि हरिवंश हित जिनव भ्रमहि गुण सलिल पर।
जिहिं नामनि मंगल लोक तिहुँ सु हरि पद भजु न विलम्ब कर।।

मैं जु मोहन सुन्यौ वेण गोपाल कौ।
व्योम मुनियान सुर नारि विथकित भई,
कहत नहिं बनत कछु भेद यति-ताल कौ।।
श्रवण कुण्डल छरित रुरत कुंतल ललित,
रुचिर कस्तूरि चंदन तिलक भाल कौ।
चंद गति मन्द भई निरखि छवि काम गई,
देखि हरिवंश हित-वेष नंदलाल कौ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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