साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
वास्तव में, सूरसागर में हित चतुरासी के जो पद सम्मिलित कर दिये गये हैं, वे उसके सर्वश्रेष्ठ रत्नों में से हैं। नीचे श्रीहिताचार्य के कुछ छंद उदधृत किये जाते हैं,
ना जानौ छिन अंत कवन बुधि घटहि प्रकाशित।
छुटि चेतन जु अचेत तेउ मुनि भये विसवासित।।
पारासर सुर इन्द्र कलप कामिनि मन फंद्या।
परिव देह दुख द्वन्द कौंन क्रम काल निकंद्या।।
इहि डरहि डरपि हरिवंश हित जिनव भ्रमहि गुण सलिल पर।
जिहिं नामनि मंगल लोक तिहुँ सु हरि पद भजु न विलम्ब कर।।
मैं जु मोहन सुन्यौ वेण गोपाल कौ।
व्योम मुनियान सुर नारि विथकित भई,
कहत नहिं बनत कछु भेद यति-ताल कौ।।
श्रवण कुण्डल छरित रुरत कुंतल ललित,
रुचिर कस्तूरि चंदन तिलक भाल कौ।
चंद गति मन्द भई निरखि छवि काम गई,
देखि हरिवंश हित-वेष नंदलाल कौ।।
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