श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
‘हित हरिवंश’ जुगल करिनी-गज विहरत पिय बन-प्यारी’[1] हृदय अति फूल समतूल पिय-नागरी, ‘हित चतुरासी’ में प्रतीप अलंकार के कई सुन्दर उदाहरण हैं जिनमें उपमेय की तुलना में उपमान की निष्फलता प्रदर्शित की गई है। एक उदाहरण देखिये, सकल सुधंग विलास परावधि नाचत नवल मिले स्वर गावत। यहाँ युगल के नेत्रों को देखकर मृगज, नृत्य को देखकर मयूर, गति को देखकर मराल, उनके गान को सुनकर भ्रमर और पिक एवं उनकी उस समय की छवि को देखकर, ‘अद्भुत-कोटि मदन’ नत-शिर हो रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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