हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 238

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


इसी प्रकार राधा-कृष्ण की प्रेम मत्तता व्यक्त करने के लिये श्रीहित जी ने उनको कई पदों में ‘जुगल करिनी गज’ के रूपक से मंडित किया है।

‘हित हरिवंश’ जुगल करिनी-गज विहरत पिय बन-प्यारी’[1]

हृदय अति फूल समतूल पिय-नागरी,
करिनि-करि मत्त मनौं विविध गुन रामिनी।[2]

‘हित चतुरासी’ में प्रतीप अलंकार के कई सुन्दर उदाहरण हैं जिनमें उपमेय की तुलना में उपमान की निष्फलता प्रदर्शित की गई है। एक उदाहरण देखिये,

सकल सुधंग विलास परावधि नाचत नवल मिले स्वर गावत।
मृगज, मयूर, मराल, भ्रमर, पिक अद्भुत कोटि मदन शिर नावत।।[3]

यहाँ युगल के नेत्रों को देखकर मृगज, नृत्य को देखकर मयूर, गति को देखकर मराल, उनके गान को सुनकर भ्रमर और पिक एवं उनकी उस समय की छवि को देखकर, ‘अद्भुत-कोटि मदन’ नत-शिर हो रहे हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 45
  2. पद-46
  3. पद-72

संबंधित लेख

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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