श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
‘चंचल रसिक मधुप मोहन मन रखो कनक कमल कुच कोरी’ पंक्ति में मोहन के मन को कुच-कोर पर रमने वाला ‘चंचल रसिक मधुप’ कह कर कुच-कोर के विस्तार को लक्षित कराया गया है। इसके नीचे की पंक्ति में श्यामसुन्दर के नेत्र खंजनों को विविध बंधनों से बँधा बतलाकर श्रीराधा के अंगों के समान आकर्षण को व्यंजित किया गया है। ‘हित चतुरासी’ में सादृश्य-मूलक अलंकारों का उपयोग भी देखने योग्य हैं। श्रीहित हरिवंश ने इनका प्रयोग विरल किया है किन्तु वह है बड़ा स्वाभाविक एवं चमत्कार पूर्ण। कुछ उदाहरण देखिये, नित्य रस पहिर पट नील प्रगटित छबी, यहाँ रास में प्रवृत्त श्रीराधा की मुख-छवि का वर्णन है। नृत्य के समय नीलपट के अवगुण्ठन में श्रीराधा का मुख ऐसा मालुम होता है मानों जलद में माघ मास की चाँदनी हो! मकर की चाँदनी शरद्-चंद्रिका की भाँति ही उज्ज्वल होती है, भेद इतना है कि उस समय में वसंत-कालीन मेघ चलते रहते हैं और चाँदनी स्वाभावतः इनमें से छनकर आती है। नृत्य की गति के कारण चंचल बने हुए अवगुण्ठन में श्रीराधा की मुख-छटा की उत्प्रेक्षा इससे अधिक सुन्दर क्या हो सकती है? दूसरा उदाहरण देखिये, कोमल कुटिल अलक सुठि शोभित अवलंवित युग गंडन। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज