हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 236

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


श्रीराधा नागरता की राशि हैं। उनकी एक लीला युक्त चितवन में ‘नव नागर कुल मौलि’ साँवरे को विवश बना दिया है। उनके अंग-अंग में माधुर्य भर रहा है और वे बिना भूषण के भूषित व्रज-गोरी हैं। वे क्षण-क्षण में सुधंग नृत्य के विविध अंगों को कुशलता पूर्वक प्रगट करती रहती हैं और वेगवान श्रृंगार-रस-सिंधु में वे झकझोरी हुई हैं। उन्होंने मोहन के चंचल और रसिक मन-मधुप को अपने कनक कमल के समान कुचों की कोर पर रमा रखा है। उनके विविध अंगों ने उनके प्रियतम के ‘खंजन खग’ के समान युगल नेत्रों को विविध निबंधन डोरियों से बाँध रखा है।

‘चंचल रसिक मधुप मोहन मन रखो कनक कमल कुच कोरी’ पंक्ति में मोहन के मन को कुच-कोर पर रमने वाला ‘चंचल रसिक मधुप’ कह कर कुच-कोर के विस्तार को लक्षित कराया गया है। इसके नीचे की पंक्ति में श्यामसुन्दर के नेत्र खंजनों को विविध बंधनों से बँधा बतलाकर श्रीराधा के अंगों के समान आकर्षण को व्यंजित किया गया है।

‘हित चतुरासी’ में सादृश्य-मूलक अलंकारों का उपयोग भी देखने योग्य हैं। श्रीहित हरिवंश ने इनका प्रयोग विरल किया है किन्तु वह है बड़ा स्वाभाविक एवं चमत्कार पूर्ण।

कुछ उदाहरण देखिये,

नित्य रस पहिर पट नील प्रगटित छबी,
वदन जनु जलद में मकर की चाँदनी।[1]

यहाँ रास में प्रवृत्त श्रीराधा की मुख-छवि का वर्णन है। नृत्य के समय नीलपट के अवगुण्ठन में श्रीराधा का मुख ऐसा मालुम होता है मानों जलद में माघ मास की चाँदनी हो! मकर की चाँदनी शरद्-चंद्रिका की भाँति ही उज्ज्वल होती है, भेद इतना है कि उस समय में वसंत-कालीन मेघ चलते रहते हैं और चाँदनी स्वाभावतः इनमें से छनकर आती है। नृत्य की गति के कारण चंचल बने हुए अवगुण्ठन में श्रीराधा की मुख-छटा की उत्प्रेक्षा इससे अधिक सुन्दर क्या हो सकती है? दूसरा उदाहरण देखिये,

कोमल कुटिल अलक सुठि शोभित अवलंवित युग गंडन।
मानहुँ मधुप थकित रस लंपट नील कमल के खंडन।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 71
  2. हि. च. 61

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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