हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 235

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


इसमें श्रीराधा का सीधा-सा रूप-वर्णन है। रूप, चातुर्य, शील, श्रृंगार-गुणों में समस्त व्रज-युवतियों से ‘आगरी’ श्रीराधा आज शोभायमान हैं। उनके दक्षिण कर में कमल और उनकी वाम भुजा सखी के अंश पर स्थित है। वे समस्त विद्याओं में निपुण हैं और एकान्त नव कुंज में बड़-भाग श्याम से मिलती हैं। यहाँ, श्रीराधा से नव निकुंज में मिलने वाले श्याम को बड़भाग कह कर श्रीराधा के अद्भुत रूप-गुण की व्यंजना की गई है। इस जगह वाच्य सर्वथा अतिशयित हो गया है अतः यह उत्तम ध्वनि का उदाहरण है।

श्यामसुन्दर के ऊपर पड़ने वाले श्रीराधा के रूप-गुण-माधुर्य के अद्भुत प्रभाव के बड़े मार्मिक रूप उन्होंने अपने पदों में प्रदर्शित किये हैं। मानिनि श्रीराधा, सखी के मुख से, अपने प्रियतम की दारुण विरह कातरता का वर्णन सुनकर चपलता पूर्वक उनके पास चल देती है। सखी आगे जाकर उनके आगमन की सूचना श्यामसुन्दर को देती है और वे प्रेम क्षेत्र के धीर सूरमा इस समाचार को सुनकर एक वार भयभीत हो उठते हैं।

(जयश्री) हित हरिवंश परम कोमल चित चपल चली पिय तीर।
सुनि भयभीत वज्र कौ पंजर सुरत-सूरत रनधीर।।[1]

श्यामसुन्दर के हृदय में भय का संचार दिखाकर यहाँ श्रीराधा के उन्मद-प्रेम की व्यंजना की गई है।

कहीं श्रीहित हरिवंश, श्यामसुन्दर के आस्वाद की रीति का चित्रमय वर्णन करके श्रीराधा के अद्भुत अंग-सौंदर्य की व्यंजना कर देते हैं।

यह पद देखिये,

नागरता की राशि किशोरी।
नव नागर कुल मौलि साँवरौ बरबस कियौ चितै मुख मोरी।।
रूप रुचिर अँग अंग माधुरी बिनु भूषनि भूषित व्रज गोरी।
छिन-छिन कुशल सुधंग अंग में कोक रभस रस-सिंधु झकोरी।
चंचल रसिक मधुप मोहन मन राखे कनक कमल कुचकोरी।
प्रीतम नैन जुगल खंजन खग बाँधे विविध निबंधन डोरी।।
अवनी उदर नाभि सरसी में मनहुँ कछक मादक मधु घोरी।
(जै श्री) हित हरिवंश पिवत सुन्दर वर सींव सुदृढ़ निगमन की तोरी।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि.च. 37
  2. हित. च. 82

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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