हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 233

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


श्रीहित हरिवंश प्रस्तुत को ही इस प्रकार उपस्थित करते हैं कि उसका सम्पूर्ण सौन्दर्य निखरता चला आता है। इस कला में भक्त कवियों में से कोई उनकी समता नहीं करता। श्रीराधा के एक-से-एक सुन्दर रूप वर्णन उन्होंने अपने पदों में उपस्थित किये हैं किन्तु उनमें सादृश्य मूलक अलंकारों का उपयोग बहुत विरल है। एक पद देखिये,

रुचिर राजत वधू कानन किशोरी।
सरस सोडष कियें, तिलक मृग मद दियें,
मृगज लोचन, उवटि अंग, शिर खोरी।।
गंड पंडीर मंडित, चिकुर चंद्रिका, मेदनी कर्वार गूंथित सुरँग डोरी।
श्रवन ताटंक के चिवुक पर विंदु दै, कसूंभी कंचुकी दुरे उरजफल कौरी।।
वलय कंकन दोति, नखन जावक जोति, उदरगुन रेख, पट नील कटि थोरी।
सुभग जघन स्थली, कुनित किंकिनि भली, कोक संगीत रस सिंधु झकझोरी।।
विविध लीलारचित, रहसि हरिवंश हित, रसिक सिरमौर राधारमन जोरी।
भृकृटि निर्जितमदन, मंद सस्मित वदन, किये रस विवस घनश्याम पिय गोरी।।[1]

जिस प्रकार एक कुशल नाटककार किसी दृश्य के वर्णन में उसके विभिन्न अंगों का संयोजन इस प्रकार करता है कि वह अपनी सम्पूर्ण गरिमा लिये हुए दृष्टि के सामने खड़ा हो जाता है, उसी प्रकार श्रीहित हरिवंश के पदों में प्रस्तुत वस्तु का अंग-विन्यास बड़े कौशल के साथ किया जाती है। उपरोक्त पद की ‘वलय कंकन दोत, नखन जावक जोत, उदर गुन रेख, पट नील कटि थोरी’ पंक्ति में ‘कटि थोरी’ के साथ नील पट के उल्लेख ने कटि और पट दोनों के सौंदर्य को उभार दिया है। वास्तव में पट का सौंदर्य सूक्ष्म कटि पर आकर ही स्पष्ट होता है। इसी प्रकार ‘सुभग जघन स्थली, कुनित किंकिनि भली’ के साथ ‘कोक संगीत रस सिन्धु झक झोरी’ विशेषण के प्रयोग ने श्री राधा के संगीतमय एवं रसमय व्यक्तित्व में ‘सुभग जघनस्थली’ के महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित कर दिया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च. 67

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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