श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
रुचिर राजत वधू कानन किशोरी। जिस प्रकार एक कुशल नाटककार किसी दृश्य के वर्णन में उसके विभिन्न अंगों का संयोजन इस प्रकार करता है कि वह अपनी सम्पूर्ण गरिमा लिये हुए दृष्टि के सामने खड़ा हो जाता है, उसी प्रकार श्रीहित हरिवंश के पदों में प्रस्तुत वस्तु का अंग-विन्यास बड़े कौशल के साथ किया जाती है। उपरोक्त पद की ‘वलय कंकन दोत, नखन जावक जोत, उदर गुन रेख, पट नील कटि थोरी’ पंक्ति में ‘कटि थोरी’ के साथ नील पट के उल्लेख ने कटि और पट दोनों के सौंदर्य को उभार दिया है। वास्तव में पट का सौंदर्य सूक्ष्म कटि पर आकर ही स्पष्ट होता है। इसी प्रकार ‘सुभग जघन स्थली, कुनित किंकिनि भली’ के साथ ‘कोक संगीत रस सिन्धु झक झोरी’ विशेषण के प्रयोग ने श्री राधा के संगीतमय एवं रसमय व्यक्तित्व में ‘सुभग जघनस्थली’ के महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित कर दिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हि. च. 67
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज