श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
आजु नीकी बनी राधिका नागरी। अति नागरि वृषभनु किशोरी। नागरता की राशि किशोरी। यह नागरता, विचित्र प्रकार से, श्रीहित हरिवंश की वाणी का भी प्रमुख गुण बन गई है। उनके पदों में एक अद्भुत सुसंस्कारिता और रस-सिक्त आभिजात्य के दर्शन होते हैं। क्या शब्दों का चुनाव और क्या भावों का उपस्थापन, सर्वत्र सुरुचि और दाक्षिण्य का प्रयोग मिलता है। अपने पदों की ‘कोमल-कांत-पदावली’ के कारण श्रीहित हरिवंश हिन्दी के जयदेव कहलाते हैं। कोमल-कांत-पदावली का आधार सुरुचि पूर्ण शब्द-चयन होता है। इन पदों की संस्कृत-बहुल भाषा में संस्कृत शब्दों का तो सुन्दर चयन किया ही गया है, लोक भाषा के भी उनही शब्दों का उपयेाग हुआ है जो कोमलता एवं वजन में संस्कृत शब्दों से किसी तरह कम नहीं हैं। उदाहरण के लिये, ‘मधुरितु पिकशाव नूत-मंजरी चखी’ इस वाक्य में लोक भाषा का एक ही शब्द ‘चखी’ प्रयुक्त है किन्तु वह संपूर्ण वाक्य के प्रभाव में महत्त्वपूर्ण योग दे रहा है। वाक्य के प्रथम पाँच संस्कृत शब्दों की योजना जितनी सुरुचि पूर्ण है, उतना ही इनके साथ ‘चखी’ शब्द का प्रयोग भी सुन्दर है। इसी प्रकार निम्नलिखित पंक्तियों में ‘बोलनि’ और ‘बिनु-मोलनि’ शब्द इनके भूषण बने हुए हैं। निर्तनि भ्रकुटि वदन अंबुज मृदु सरस हास मधु बोलनि। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हि. च. पद 34
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज