श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
प्यारी जू प्यारे कौं भावैं सो सहज करैं, दूसरे सुकवि महात्मा श्री भगवत मुद्रित हैं। इन्होंने, जैसा हम देख चुके हैं, राधावल्लभीय सम्प्रदाय के अनुयायी महात्माओं का प्रथम प्राप्त इतिहास ‘रसिक अनन्य माल’ के नाम से लिखा है। इनके 207 सुललित पद मिलते हैं जिनमें राधा वल्लभीय रस-पद्धति का ही निर्वाह किया गया है। तीसरे महात्मा वल्लभ रसिक जी को तो बतलाने पर ही चैतन्य सम्प्रदायानुयायी मानना पड़ता है। उनकी सम्पूर्ण वाणी में न तो कहीं इस बात का उल्लेख मिलता है और न कहीं उसमें गौड़ीय रस-पद्धति की छाया मिलती है। गौड़ीय पद्धति में श्रीकृष्ण और राधा की प्रीति विषम मानी जाती है और इन दोनों में क्रमशः प्रेमपात्र और प्रेमी का सम्बन्ध स्वीकार किया जाता है। वल्लभ रसिक जी को यह दोनों बातें मान्य नहीं हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा हैः- यद्यपि प्रीति दुहूँन की कहियतु एक समान। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बारह बाट अठारह पैंड़े
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