हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 220

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


श्री चैतन्य-सम्प्रदाय का भक्ति-साहित्य प्रधानतया संस्कृत और बँगला में है। इस सम्प्रदाय के अनुयायी एवद्देशीय रसिक संतों ने व्रज भाषा में जिस छोटे से साहित्य की सृजना की है उसमें से एक बड़े अंश में राधावल्लभीय रस-पद्धति से राधा कृष्ण के विहार का वर्णन हुआ है। राधावल्लभीय रस पद्धति के तीन प्रसिद्ध एवं मौलिक तथ्य हैं,- श्रीराधा की प्रधानता, राधा और कृष्ण में समान प्रीति की स्थिति एवं एक ही काल में संयोग और वियोग का अनुभव। चैतन्य-सम्प्रदाय का अधिकांश व्रज-भाषा साहित्य इन तीन तथ्यों को आधार बना कर चला है। इस सम्प्रदाय के व्रज-भाषा कवियों में प्रथम नाम रामराय प्रभु का आता है। यह श्री नित्यानन्द प्रभु के शिष्य थे और इनके पदों का संग्रह ‘आदिवाणी’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है। इनकी वाणी के प्रथम पद में और ‘हित चतुरासी’ के प्रथम पद में अद्भुत साम्य दिखलाई देता है। ‘हित चतुरासी’ का प्रथम पद हैः-

जोई-जोई प्यारौ करै सोई मोहि भावै,
भावै मोहि जोई सोइ-सोई करैं प्यारे।
मोकों तौ भावती ठौर प्यारे के नैननि में,
प्यारौ भयौ चाहै मेरे नैननि के तारे।।
मेरे तन-मन प्रान हूँ तें प्रीतम प्रिय,
अपने कोटिक प्रान प्रीतम मोसौं हारे।
(जयश्री) हित हरिवंश हंस-हंसनी साँवल-गौर,
कहौ कौन करै जल-तरंगनि न्यारे।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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