हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 22

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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श्री हरिवंश-चरित्र के उपादान


नाम-ध्वनि सुनकर राजा की नींद खुल गई। उसने उसी समय कारागृह का द्वार खुलवाया और वैश्य को गुर-भ्राता समझ कर उसके पैर पकड़ लिये। अनेक प्रकार से क्षमा-याचना करने के बाद नर वाहन जी ने उससे कहा- ‘हमने तुमको जैनी जान कर लूट लिया था। तुम श्री हित जी के शिष्य हों, यह मुझ को किसी ने नहीं बतलाया था। प्रभु की ऐसी ही इच्छा समझ कर अब तुम इस दुखद-घटना को भूल जाओ।’ प्रात:काल नर वाहन जी ने वैश्य को स्नान करा कर बहुमूल्य वस्त्राभूषण प्रदान किये और उसका पूरा द्रव्य वापस देकर उस को अत्यन्त सम्मान-पूर्वक अनेक अनुचरों के साथ विदा कर दिया।

वहाँ से विदा होकर वैश्य सीधा हित प्रभु के पास पहुँचा और सम्पूर्ण द्रव्य उनको भेंट करके उनसे शिष्य बनाने की प्रार्थना की। हित-प्रभु ने उसकी उत्कट इच्छा देखकर उसको मन्त्र तो दे दिया, किन्तु उसके द्रव्य को स्वीकार नहीं किया। भगवत मुदित जी ने लिखा है:-

साठ बासनी मुहरनि भरीं। लै हित जी के आगे धरीं।।
रुनि कह्यों धन तुमहीं राखौं। हार-हरिजन भजिकै रस चाखौ।।[1]

निर्लोभता का दूसरा उदाहरण गंगाबाई, यमुनाबाई के चरित्र से मिलता है। इन दोनों को मनोहर दास नाम के एक गायक ने पाला था। मरते समय वह गाड़ कर रखे हुये तीस हजार रुपये इनको बतला गया। गंगाबाई, यमुनाबाई ने रुपये निकालकर श्री हितजी को भेंट करने चाहे, पर उन्होंने वे साधु-सेवा में लगवा दिये।

श्रीहित हरिवंश को उच्चकोटि की कवि-प्रतिभा प्राप्त थी एवं इनकी रचनाओं की कोमल-कांत-पदावली के कारण इनको ब्रजभाषा का जयदेव कहा जाता है। ब्रजभाषा में इनके चौरासी पद ‘हित चतुरासी’ के नाम से तथा फुटकर पद ‘फुटकर वाणी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका संस्कृत पर भी पूरा अधिकार था। संस्कृत में इनकी दो रचनाएं यमुनाष्टक एवं राधा-सुधा निधि, किंवा राधा-रस सुधा-निधि उपलब्ध हैं। दूसरी रचना को कुछ लोग श्री प्रबोधानंद सरस्वती कृत बतलाते हैं, वे सब इसको श्री हित हरिवंश-कृत बतलाती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (रसिक-अनन्य माल)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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