हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 219

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


व्यास जी का पद हैः-

चाँपत चरन मोहनलाल।
पलंग पौढ़ीं कुंवरि राधा नागरी नव बाल।।
लेत कर धरि परसि नैननि हरखि लावत भाल।
लाइ राखत हृदै सौं तब गनत भाग विशाल।।
देखि पिय आधीनता भइ कृपा-सिन्धु दयाल।
व्यास स्वामिनि लिये भुज भरि अति प्रवीन कृपाल।।[1]

इसी भाव को लेकर नंददास का प्रसिद्ध पद हैः-

चाँपत चरन मोहनलाल।
पलंग पौढीं कँवरि राधे सुन्दरी व्रजवाल।।
कबहुँ कर गहि नैन लावत कबहुँ छबावत भाल।
नंददास प्रभु छवि निहारत प्रीति के प्रति पाल।।

इस पद में श्रीकृष्ण की अधीनता की पराकाष्ठा होते हुए भी वे श्रीराधा की प्रीति के प्रतिपालक हैं, वे श्रीराधा की प्रीति का प्रतिपालन करने के लिये उनके अधीन बनते हैं। व्यास जी के पद में वे श्रीराधा के अधीन बनकर अपने को परम भाग्यशाली मानते हैं। यहाँ प्रीति की प्रतिपालक श्रीराधा हैं और श्रीकृष्ण सर्वथा उनकी कृपा के आश्रित हैं।

इसी प्रकार सखी-भाव को भी अष्टछाप के महात्माओं ने अपने ढंग से ही अंगीकार किया है। उनकी सखियाँ श्रीकृष्ण कांता हैं किन्तु उनका श्रीराधा के प्रति सापत्न्य भाव न होकर सख्य भाव है। श्रीहित हरिवंश द्वारा प्रतिष्ठित सखी स्वरूप इससे भिन्न है, यह हम पीछे देख चुके हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. व्यास वाणी-पृ. 379-80

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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