हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 216

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य


श्रीधर स्वामी की दृष्टि को अपनाने वाले बंगाली महात्माओं ने अपनी टीकाओं में रास पंचाध्यायी के उन शब्दों को पकड़ा है जो श्रीराधा की ओर संकेत करते हैं। श्री वल्लभाचार्य की सुबोधिनी और श्रीधर स्वामी की टीका में इस प्रकार का प्रयास दिखलाई नहीं देता। श्रीवल्लभाचार्य ने श्री राधा को अपने ग्रन्थों में कहीं महत्त्व नहीं दिया और न उनके द्वारा की हुई श्रीराधा की कोई स्तुति ही प्राप्त है। किंतु उनके पुत्र गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने और उनके द्वारा स्थापित अष्टछाप के कवियों ने श्री राधाकृष्ण के प्रेम का जी भर कर गान किया है। श्रीराधा की स्तुति में गोस्वामी विट्ठलनाथ जी कृत चार स्वतंत्र रचनायें प्राप्त हैं जिनमें उन्होंने श्रीराधा की कृपा-प्राप्ति के लिये विकल प्रार्थना की है और उस कृपा को अपने भक्ति-सम्प्रदाय की उन्नति के लिये परम आवश्यक बतलाया है।

कृपयति यदि राधा बाधिताशेष बाधा,
किमु परम वरिष्ठं पुष्टिमर्यादयोर्मे।

वार्ता के अनुसार, सूरदास जी के प्रयाग-काल में श्री विट्ठलनाथ ने उनसे जब यह पूछा कि इस समय तुम्हारी चित्त की वृत्ति कहाँ है तो वह उन्होंने श्रीराधा में स्थित बतलाई थी। उनका उस समय कहा हुआ पद यह है।

बलि बलि बलि हो कुँवरि राधिका नंद सुवन जासों रति मानी।
वे अति चतुर तुम चतुर शिरोमनि प्रीति करी कैसे होत है छानी।।
वे जु धरत तन कनक पीत पट सोतौ सब तेरी गति डानी।
तैं पुनि श्याम सहज वह शोभा अंबर मिस अपने उर आनी।।
पुलकित अँग अब ही ह्वै आयो निरखि देखि निजु देह सयानी।।
सूर सुजान सखी के बूझे प्रेम प्रकास भयौ विहँसानी।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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