श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
ब्रह्मानंदात्समुद्धृत्य भजनानंद योजने। भजनानंद भगवत स्वरूपात्मक है अतः भजनानंद का दान स्वरूपानंद का दान है। श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रमण करते हुए उनको भजनानंद किंवा स्वरूपानंद का दान किया था। इस रमण या लीला को श्री वल्लभाचार्य ने दो प्रकार बतलाया है- बाह्य और आन्तर। जिस प्रकार इस सम्पूर्ण प्रपंच को ‘नाम-रूपे व्याकरवाणि’ श्रुति दो प्रकार का-नामात्मक और रूपात्मक बतलाती हैं, उसी प्रकार भगवान की लीला के भी दो भेद हैं- नाम लीला और रूप लीला। जिसमें प्रभु का विरह-जनित गुण-गान हो वह नाम लीला कहलाती है और जिसमें केवल उनका रमण हो वह रूपलीला कहलाती है। रूपलीला को बाह्य लीला और नाम लीला को आन्तर लीला कहा गया है। वाह्य लीला कालचक्र की भाँति गमनागमन रूप और प्रवाह रूप है, आन्तर लीला नित्य है। आन्तर लीला को परमफल-रूपा भी बतलाया गया है। बाह्याभ्यंतर भेदेन आंतरं तु परं फलम्, आंतर लीला ‘निर्दुष्ट’ है, उसमें रूप लीला की भाँति मानादि दोष नहीं होते। फल प्रकरण के सात अध्यायों में से प्रथम पाँच में जो ‘रास पंचाध्यायी’ कहलाते हैं, रूप लीला का वर्णन हैं। भगवान ने पाँच प्रकार से रूप लीला की हैं- आत्मा से, मन से, वाणी और प्राण से, इन्द्रियों से और शरीर से। पंचाध्यायी में इन पाँच प्रकारों की रूप लीला का और अंतिम दो अध्यायों में आंतर लीला का वर्णन है। इनमें से अंतिम अध्याय[3] में निर्दोष फल-रूपा आन्तर लीला कही गई है। आंतर लीला केवल विप्रयोगात्मिका एवं भगवद्-गुणात्मिका है। श्री घनश्याम भट्ट ने अपनी ‘सूचिका’ में तामस-फल प्रकरण के सात अध्यायों में से प्रथम छह अध्यायों में भगवान के प्रसिद्ध ऐश्वर्यादि धर्मों का और सातवें अध्याय में उनके धर्मी स्वरूप का वर्णन बतलाया है। श्री वल्लभाचार्य ने सातवें अध्याय की अपनी कारिका में इस अध्याय की लीला को ‘सर्वोत्तमा’ कहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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