श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
सख्य रस में चरित्र के साथ लीलाओं को भी अवकाश है और लीला का क्षेत्र यहीं से आरंभ होता है। सखाओं में परस्पर निरुद्देश्य क्रीडा का होना स्वाभाविक है और भक्त कवियों ने इस क्रीडा के सजीव वर्णन उपस्थित किये हैं। सख्य, वत्सल और मधुर रतियाँ संभ्रम के भार से मुक्त होती हैं। साथ ही इनमें ‘आनंद के लिये आनंदवाली’ प्रवृत्ति जाग्रत रहती है। इसी प्रवृत्ति को लेकर लीला की अवतारणा होती है। वात्सल्य रस में भी माता और बालक का प्रेम संभ्रम-शून्य और अन्य उद्देश्य हीन होता है। बाल लीला के सबसे बड़े गायक सूरदास हैं। सख्य और वात्सल्य में लीला की अभिव्यक्ति कुछ बँधे हुए रूपों में होती है, इनमें भाव गांभीर्य तो होता है किन्तु लीला का विस्तार और उसकी विविधता कम होती है। मधुर रस में लीला को उन्मुक्त प्रदेश मिल जाता है और वह अनेक नये रूपों में प्रगट हो जाती है। प्रेमलीला के उपासक भक्तों ने, इसीलिये, मधुर रस को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। सूरदास ने भी जितने पद वात्सल्य और सख्य के कहे हैं उनसे कहीं अधिक श्रृंगार के कहे हैं। अष्टछाप के अन्य कवियों में सख्य और वात्सल्य के पदों का अनुपात और भी कम रह गया है। लीला साहित्य के प्रणेताओं में सूरदास जी का विशिष्ट स्थान है। श्री वल्लभाचार्य का शिष्य होने के बाद, उनकी आज्ञा से, सूरदास जी ने श्रीकृष्ण लीला का गान प्रारंभ किया था। वार्ता में बतलाया गया है कि श्री वल्लभचार्य जी ने उनको भागवत के दशम स्कंध की अनुक्रमणिका सुनाई थी और फिर उनको व्रज में लाकर गोकुल के दर्शन कराये थे। गोकुल के साथ भाव-सम्बन्ध होते ही सूरदास जी को श्रीकृष्ण की बाल लीला का स्फुरण हुआ और उन्होंने वहीं एक पद बनाकर श्री वल्लभाचार्य को सुनाया। वल्लभ सम्प्रदाय की उपासना एवं सेवा प्रणाली में बाल-भाव का प्राधान्य है और सूरदास जी ने अपने सम्प्रदाय के सर्वथा अनुकूल रहकर बाल-लीला का गान किया है। किन्तु उनके श्रृंगार-लीला सम्बन्धी, पदों के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती। उनके श्रृंगारी पद श्री वल्लभाचार्य के तत्सम्बन्धी दृष्टिकोण का पूरा अनुसरण नहीं करते। इस बात को समझने के लिये हमें श्री वल्लभाचार्य कृत भागवत की प्रसिद्ध टीका ‘सुबोधिनी’ का अध्ययन करना होगा। भागवत की टीकाओं में यह टीका अपने ढंग की अनोखी है ओर इसी में श्री वल्लभाचार्य ने कृष्ण लीला सम्बन्धी अपने विशिष्ट दृष्टिकोण को उपस्थित किया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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