श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य
राम-भक्ति-शाखा में श्रीराम के ‘चरित्र’ का चित्रण हुआ है, कृष्ण-भक्ति-शाखा में श्रीकृष्ण की ‘लीला’ का गान। ‘चरित्र’ और ‘लीला’ का प्रयोग प्रायः समानार्थ में होता है और राम चरित्र को रामलीला भी कहते हैं। ‘चरित्र’ और ‘लीला’ चाहे बाहर से एक जैसे दिखते है।, किन्तु इन दोनों में महत्त्वपूर्ण भिन्नता है। चरित्र के वर्णन में उन क्रियाओं का प्रकाशन विशेष रूप से होता है जो जीवन में किसी विशेष उद्देश्य से की जाती हैं, लीला के गान में उन क्रियाओं को प्रकट किया जाता है जो केवल आनंदमयी हैं और जो निरुद्देश्य हैं। लीला का प्रयोजन लीला ही माना गया है। भागवत में श्रीकृष्ण चरित्र और लीला, दोनों का वर्णन मिलता है। कृष्ण भक्त कवियों ने श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन बहुत कम किया है और लीला का बहुत अधिक। सूरदास श्रीमद्भागवत के आधार पर सम्पूर्ण कृष्ण चरित्र का वर्णन करते हैं किन्तु उनके विश्राम स्थल दो ही हैं- बाल गोपाल की आनंदमयी और निरुद्देश्य बाल-चेष्टायें और श्रीकृष्ण और गोपियों का सहज प्रेम। लीला को भक्तों ने क्रीडा भी कहा है और जिसमें हार-जीत का प्रश्न प्रधान न हो वही सुन्दर क्रीडा है। क्रीडा का प्रयोजन क्रीडा के सुख की अनुभूति ही है और लीला-सुख के अनुभव के लिये ही भक्तों ने लीला का गान किया है। लीला में किसी शिक्षा को ढूँढना व्यर्थ है क्योंकि फिर तो लीला सोद्देश्य बनकर चरित्र बन जायगी। इस बात को ध्यान में न रख कर ही कृष्ण-भक्ति काव्य में लोक संग्राहकता के अभाव की शिकायत की जाती है। कृष्ण-भक्ति काव्य के बहुत बड़े अंश में, निर्विवाद रूप से, लोक संग्राहकता का अभाव है किन्तु यह इस काव्य का दूषण नहीं कहा जा सकता। इस अभाव से इसकी सुषमा को कोई हानि नहीं पहुँचती। यह तो भिन्न युग के लोगों की भिन्न रुचि का प्रश्न है। भक्ति-काल में भगवान के प्रत्येक चरित्र पर लीला की निरूद्देश्यता का आरोप किया जाता था, अब लीला से चरित्र के समान आदर्श-वाहक बनने की आशा की जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 18-14
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